नई दिल्ली,25 फरवरी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित ‘ग्लोबल साउथ की महिला शांति रक्षकों के सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र (UN) शांति अभियानों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि महिला शांति रक्षक न केवल विविधता लाती हैं, बल्कि वे स्थानीय समुदायों में विश्वास स्थापित करने और लैंगिक आधारित हिंसा को कम करने में भी प्रभावी भूमिका निभाती हैं।
महिलाओं की भागीदारी से शांति मिशनों को मजबूती
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि महिला शांति रक्षकों की उपस्थिति से स्थानीय आबादी के साथ संवाद और सहयोग बेहतर होता है। वे संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों से जुड़ी समस्याओं को अधिक संवेदनशीलता और प्रभावी ढंग से हल कर सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं की भागीदारी से शांति अभियानों की सफलता दर बढ़ती है और हिंसा में कमी आती है।
भारत का योगदान
भारत के शांति अभियानों में योगदान को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने बताया कि अब तक 2,90,000 से अधिक भारतीय शांति रक्षक 50 से अधिक मिशनों में सेवा दे चुके हैं, जिनमें 154 भारतीय महिलाएं वर्तमान में छह चल रहे अभियानों में तैनात हैं। भारत हमेशा से संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों का एक मजबूत स्तंभ रहा है, और इसमें महिलाओं की बढ़ती भागीदारी इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
सम्मेलन का उद्देश्य
यह सम्मेलन विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र के सहयोग से आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य महिला शांति रक्षकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करना और उन्हें वैश्विक शांति अभियानों में अधिक सक्रिय रूप से शामिल करने के तरीकों को बढ़ावा देना था।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति मुर्मू का संदेश इस बात पर बल देता है कि महिलाओं की भागीदारी से शांति अभियानों की प्रभावशीलता बढ़ती है। यह न केवल शांति और सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में स्थायी स्थिरता लाने में भी मदद करता है। भारत की बढ़ती भूमिका और महिलाओं की सक्रिय भागीदारी से वैश्विक शांति प्रयासों को और मजबूती मिलेगी।