नई दिल्ली,7 सितम्बर। राजस्थान के एक प्रमुख हाईवे टोल कलेक्शन में बड़ा घोटाला सामने आया है। आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत मिली जानकारी से यह खुलासा हुआ है कि जिस हाईवे के निर्माण में महज 1896 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, उससे अब तक टोल कलेक्शन के जरिए 8349 करोड़ रुपये वसूले जा चुके हैं। यह मामला सरकारी एजेंसियों और ठेकेदारों द्वारा टोल संग्रहण प्रणाली में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण बन गया है।
आरटीआई से हुआ खुलासा
आज तक न्यूज चैनल ने आरटीआई के जरिए इस घोटाले का पर्दाफाश किया। इस आरटीआई में जानकारी मांगी गई थी कि राजस्थान के इस हाईवे पर टोल वसूली की कुल राशि कितनी है और निर्माण में कितनी लागत आई थी। जवाब में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि हाईवे के निर्माण की कुल लागत 1896 करोड़ रुपये थी, जबकि अब तक टोल कलेक्शन के जरिए 8349 करोड़ रुपये वसूले जा चुके हैं।
यह आंकड़ा न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि जब निर्माण लागत की भरपाई पहले ही हो चुकी है, तो टोल वसूली अब तक क्यों जारी है और इस अतिरिक्त राशि का इस्तेमाल कहां किया जा रहा है।
टोल वसूली की प्रक्रिया पर सवाल
इस घोटाले से यह स्पष्ट होता है कि टोल वसूली के लिए लागू की गई नीतियों में गंभीर खामियां हैं। आमतौर पर टोल का उद्देश्य सड़क निर्माण और रखरखाव की लागत की भरपाई करना होता है। एक बार जब यह लागत वसूल ली जाती है, तो या तो टोल समाप्त कर दिया जाता है या उसे कम किया जाता है। लेकिन इस मामले में, टोल कलेक्शन कई गुना अधिक हो चुका है, और फिर भी इसे जारी रखा गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा हो सकता है, जिसमें सरकारी अधिकारियों और निजी ठेकेदारों के बीच मिलीभगत से जनता से अनावश्यक रूप से धन वसूला जा रहा है। इस तरह की अनियमितताएं न केवल जनता के भरोसे को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को भी उजागर करती हैं।
जनता का गुस्सा और आक्रोश
राजस्थान के इस टोल कलेक्शन मामले ने स्थानीय जनता में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है। लोग पूछ रहे हैं कि जब निर्माण लागत से कहीं अधिक टोल वसूली हो चुकी है, तो उन्हें क्यों इस भारी भरकम टोल का भुगतान करना पड़ रहा है। टोल प्लाजा पर रोज़ाना गुजरने वाले वाहन चालकों ने इस विषय में विरोध प्रदर्शन भी किए हैं, और कई सामाजिक संगठनों ने इसे जनता के साथ अन्याय बताया है।
लोगों का कहना है कि टोल की इतनी भारी रकम वसूली जाना जनता के पैसे का दुरुपयोग है, और सरकार को इस पर तुरंत रोक लगानी चाहिए। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भी इस मामले की जांच की मांग की है और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।
प्रशासनिक प्रतिक्रिया
इस घोटाले के खुलासे के बाद, राजस्थान सरकार और संबंधित प्रशासनिक अधिकारी दबाव में आ गए हैं। सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं और कहा है कि टोल संग्रहण में अनियमितताओं को गंभीरता से लिया जाएगा।
हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जांच कितनी पारदर्शी और निष्पक्ष होती है। क्योंकि इस तरह के मामलों में अक्सर जांच लंबी खिंचती है और दोषियों को बच निकलने का मौका मिल जाता है।
निष्कर्ष
राजस्थान में टोल कलेक्शन के इस मामले ने एक बार फिर से दिखा दिया है कि कैसे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के चलते आम जनता का पैसा लूटा जा रहा है। 1896 करोड़ की लागत पर 8349 करोड़ रुपये की वसूली होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि टोल प्रणाली में बड़े स्तर पर धांधली चल रही है।
जनता अब उम्मीद कर रही है कि इस मामले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी और टोल वसूली की प्रक्रिया में सुधार किए जाएंगे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।