नई दिल्ली, 4 फरवरी। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सरकारी और अर्ध-सरकारी कार्यालयों में मराठी भाषा के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है। 3 फरवरी 2025 को जारी सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के अनुसार, सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को कार्यालय में मराठी में ही संवाद करना होगा।
मुख्य बिंदु:
- सभी सरकारी दस्तावेज और पत्राचार: महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम, 1964 के अनुसार, निषिद्ध उद्देश्यों को छोड़कर, सभी सरकारी कार्यालयों के दस्तावेज, पत्राचार, नोटिस, आदेश और संदेश मराठी में होंगे।
- कंप्यूटर कीबोर्ड: सभी कार्यालयों में पर्सनल कंप्यूटर (पीसी) के कीबोर्ड पर रोमन वर्णमाला के साथ-साथ मराठी देवनागरी वर्णमाला भी होनी चाहिए।
- सूचना पट्ट और वेबसाइट: दफ्तरों के अंदर सूचना पट्ट (नोटिस बोर्ड) मराठी भाषा में अनिवार्य होंगे, और कार्यालय स्तर पर सभी प्रकार की प्रस्तुतियां और वेबसाइट भी मराठी में होंगी।
- शिकायत प्रक्रिया: यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी मराठी में संवाद नहीं करता है, तो संबंधित कार्यालय प्रमुख या विभाग प्रमुख को शिकायत की जा सकती है। जांच के बाद दोषी पाए जाने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
इस निर्णय का उद्देश्य मराठी भाषा के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार को बढ़ावा देना है, जिससे राज्य के प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में मराठी के उपयोग को सुनिश्चित किया जा सके।
मराठी को 2024 में मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा
महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम 1964 के मुताबिक राज्य में प्रस्ताव, पत्र और परिपत्र समेत सभी आधिकारिक दस्तावेज मराठी में होने चाहिए। 2024 में स्वीकृत हुई मराठी भाषा नीति ने भाषा के संरक्षण, संवर्धन, प्रसार और विकास के लिए सभी सार्वजनिक मामलों में मराठी के इस्तेमाल की सिफारिश की थी।
पिछले साल अक्टूबर में, केंद्र सरकार ने लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया। केंद्र ने कहा था कि शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से खास तौर पर एजुकेशन और रिसर्च फील्ड में रोजगार अवसर बढ़ेंगे।
आदेश में कहा गया है कि सरकारी कर्मचारी जो भाषा नियमों का पालन नहीं करेंगे, उन पर एक्शन लिया जाएगा। नियमों का उल्लंघन करने वालों की शिकायत ऑफिस के सीनियर अधिकारी या विभाग प्रमुखों से की जा सकती है।