नई दिल्ली,25 नवम्बर। संभल मस्जिद विवाद पर देशभर में चर्चा जारी है। इसी बीच शिया धर्मगुरु ने इस मामले में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान का हवाला देते हुए सवाल उठाया है कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना कहां गायब हो गई है। उनका यह बयान देश में बढ़ती असहिष्णुता और धार्मिक विवादों की ओर इशारा करता है।
मामला क्या है?
संभल जिले में हाल ही में एक मस्जिद से जुड़ा विवाद खड़ा हुआ, जहां सांप्रदायिक तनाव ने क्षेत्र में अशांति पैदा कर दी। मस्जिद से किए गए शांति बनाए रखने के आह्वान के बावजूद, कुछ असामाजिक तत्वों ने हिंसा फैलाई। इस घटना के बाद धार्मिक नेता और समाज के विभिन्न वर्गों के लोग प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
शिया धर्मगुरु का बयान
शिया धर्मगुरु ने इस विवाद पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हम हमेशा वसुधैव कुटुंबकम की बात करते हैं, जिसका अर्थ है कि पूरा विश्व एक परिवार है। लेकिन जब ऐसे विवाद होते हैं, तो यह भावना कहां चली जाती है? यह समय है कि हम सभी धर्मों को बराबर सम्मान दें और नफरत फैलाने वालों को अलग-थलग करें।”
उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदू समाज को सभी धर्मों को साथ लेकर चलना चाहिए और देश में सौहार्द बनाए रखना चाहिए।
शांति और एकता की अपील
धर्मगुरु ने सभी पक्षों से अपील की कि वे शांति बनाए रखें और किसी भी उकसावे में न आएं। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थल किसी भी तरह के विवाद का केंद्र नहीं बनने चाहिए। “मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च, ये सभी प्रार्थना और शांति के स्थान हैं। इन्हें हिंसा और राजनीति से दूर रखना चाहिए।”
आरएसएस और सरकार से सवाल
शिया धर्मगुरु ने आरएसएस और सरकार से यह भी पूछा कि क्या उनके प्रयास ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना को मजबूत करने के लिए पर्याप्त हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के विवाद न केवल समाज को विभाजित करते हैं, बल्कि देश की समग्र प्रगति को भी बाधित करते हैं।
समाज को क्या सीखने की जरूरत है?
यह घटना समाज के लिए एक सबक है कि धार्मिक सहिष्णुता और सामूहिक जिम्मेदारी ही देश को आगे बढ़ा सकती है। धर्मगुरु ने कहा कि सभी समुदायों को एक साथ बैठकर संवाद करना चाहिए और हर विवाद का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से निकालना चाहिए।
निष्कर्ष
संभल मस्जिद विवाद ने एक बार फिर से धार्मिक सहिष्णुता और वसुधैव कुटुंबकम की भावना को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिया धर्मगुरु का बयान इस बात की याद दिलाता है कि भारतीय संस्कृति का आधार सह-अस्तित्व और सभी धर्मों का सम्मान है। ऐसे में यह जिम्मेदारी हर नागरिक की है कि वे नफरत फैलाने वालों के खिलाफ खड़े हों और शांति तथा एकता को बढ़ावा दें।