अखिलेश यादव का सवाल: ‘हमारे सांसद बेंगलुरु में थे तो FIR संभल में कैसे?’, पुलिस का जवाब- ‘जगह से फर्क नहीं पड़ता’

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उत्तर प्रदेश,25 नवम्बर। उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हाल ही में हुए सांप्रदायिक तनाव के मामले में पुलिस ने समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद डॉ. जियाउर्रहमान बर्क के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सवाल उठाते हुए पूछा कि जब सांसद बेंगलुरु में थे, तो उनके खिलाफ संभल में एफआईआर कैसे हो गई?

अखिलेश यादव का सवाल
अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा, “यह सरकार की मंशा को दर्शाता है। हमारे सांसद बेंगलुरु में थे और पुलिस ने उनके खिलाफ संभल में एफआईआर दर्ज कर दी। क्या अब यूपी पुलिस को यह बताने की जरूरत है कि एफआईआर दर्ज करने के लिए व्यक्ति की मौजूदगी जरूरी नहीं है?”

पुलिस का बयान
इस सवाल पर पुलिस का कहना है कि एफआईआर दर्ज करने के लिए व्यक्ति की भौतिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है। पुलिस ने तर्क दिया कि किसी घटना में नाम आने पर जांच की प्रक्रिया के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। संभल एसपी ने कहा, “कानून के तहत, किसी व्यक्ति की भूमिका का मूल्यांकन सबूतों के आधार पर किया जाता है। जहां तक एफआईआर का सवाल है, यह एक प्रारंभिक प्रक्रिया है।”

मामला क्या है?
संभल में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की। इस हिंसा में कथित रूप से भड़काऊ बयान देने और भीड़ को उकसाने का आरोप सांसद जियाउर्रहमान बर्क पर लगाया गया है।

सांसद की सफाई
सपा सांसद बर्क ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह घटना के दिन बेंगलुरु में थे और इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने इसे राजनीतिक साजिश बताते हुए कहा कि सरकार विपक्ष की आवाज दबाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रही है।

सपा का सरकार पर निशाना
सपा ने इस पूरे मामले को लेकर राज्य सरकार और पुलिस पर निशाना साधा है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “यह पूरी तरह से राजनीतिक बदले की कार्रवाई है। बीजेपी सरकार विपक्ष को झूठे मुकदमों में फंसाने की कोशिश कर रही है।”

सरकार का रुख
वहीं, बीजेपी नेताओं का कहना है कि कानून अपना काम कर रहा है। अगर किसी के खिलाफ आरोप हैं, तो जांच होगी। उन्होंने सपा पर हिंसा को बढ़ावा देने और दोषियों को बचाने का आरोप लगाया।

निष्कर्ष
यह विवाद अब राजनीतिक रंग ले चुका है। एक तरफ सपा इसे विपक्ष के खिलाफ साजिश बता रही है, तो दूसरी तरफ सरकार और पुलिस का कहना है कि कानून के दायरे में रहकर कार्रवाई की जा रही है। इस मामले की निष्पक्ष जांच से ही सच्चाई सामने आ सकती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीति और प्रशासन के इस टकराव में न्याय संभव होगा?

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