नई दिल्ली,5 नवम्बर। भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शामिल मुकेश अंबानी और गौतम अडानी, जो सालों से वैश्विक अरबपतियों की लिस्ट में ऊंचे पायदान पर रहे हैं, अब टॉप-15 अमीरों की लिस्ट से बाहर हो चुके हैं। यह गिरावट उनकी कंपनियों पर हाल के आर्थिक और कानूनी प्रभावों के कारण हुई है। आइए समझते हैं कि किन कारणों से इन दोनों दिग्गजों को झटका लगा है और इसका उनकी कंपनियों और भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर हो सकता है।
अंबानी-अडानी के नाम का दबदबा और गिरावट का कारण
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज और गौतम अडानी के अडानी ग्रुप ने पिछले कुछ दशकों में भारतीय और वैश्विक बाजारों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। जहाँ अंबानी का रिलायंस इंडस्ट्रीज तेल, टेलीकॉम, खुदरा और ई-कॉमर्स में फैला हुआ है, वहीं अडानी का साम्राज्य ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर, बंदरगाहों, और हवाई अड्डों जैसे क्षेत्रों में है। हालांकि, हाल के महीनों में इनके शेयरों में भारी गिरावट देखी गई है, जो इनके नेटवर्थ में गिरावट का मुख्य कारण बना है।
गौतम अडानी: हिंडनबर्ग रिपोर्ट का असर
गौतम अडानी की संपत्ति में बड़ी गिरावट का एक महत्वपूर्ण कारण है जनवरी 2023 में अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग द्वारा जारी रिपोर्ट, जिसमें अडानी समूह पर धोखाधड़ी और शेयरों में हेरफेर के आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई और उनकी कंपनियों की बाजार में स्थिति कमजोर हो गई। अडानी ने इस रिपोर्ट का खंडन किया, लेकिन इसका असर उनके व्यवसाय पर पड़ा। इसके चलते न सिर्फ गौतम अडानी की संपत्ति में गिरावट आई, बल्कि उन्हें अपने कई बड़े प्रोजेक्ट्स को भी रोकना पड़ा या पुनर्निर्धारित करना पड़ा।
मुकेश अंबानी: तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और कारोबारी दबाव
मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज पर भी हाल के कुछ वर्षों में कई आर्थिक दबाव देखे गए हैं। तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, बढ़ते वैश्विक व्यापारिक तनाव और पेट्रोकेमिकल्स के क्षेत्र में चुनौतियों ने उनकी संपत्ति को प्रभावित किया है। इसके अलावा, रिलायंस का टेलीकॉम बिजनेस जियो, जो एक प्रमुख खिलाड़ी बना हुआ है, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और नियामकीय प्रतिबंधों के कारण मुनाफा बनाए रखने में चुनौती का सामना कर रहा है।
वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव और अमेरिकी डॉलर का प्रभाव
भारतीय कंपनियां वैश्विक बाजारों से गहराई से जुड़ी हुई हैं, और अमेरिकी डॉलर में मजबूती आने के साथ ही भारतीय कंपनियों पर असर पड़ रहा है। डॉलर की मजबूती और बढ़ती ब्याज दरें भारतीय कंपनियों के विदेशी निवेशों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इसके चलते रिलायंस और अडानी जैसे समूहों पर वित्तीय दबाव और कर्ज बढ़ता है। इन आर्थिक प्रभावों का सीधा असर इनकी व्यक्तिगत संपत्ति और रैंकिंग पर पड़ा है।
फोर्ब्स और ब्लूमबर्ग लिस्ट में गिरावट का कारण
फोर्ब्स और ब्लूमबर्ग जैसे वैश्विक धन सूचकों में मुकेश अंबानी और गौतम अडानी की गिरावट का मुख्य कारण यह है कि उनके शेयरों की कीमतों में काफी गिरावट हुई है। जब कंपनियों के शेयरों की कीमतें गिरती हैं, तो उनके प्रमोटर्स की संपत्ति भी घट जाती है। ब्लूमबर्ग और फोर्ब्स अपने अरबपतियों की लिस्ट को दैनिक रूप से अपडेट करते हैं, इसलिए शेयरों में गिरावट का असर तुरंत इनकी नेटवर्थ पर दिखाई देता है।
भविष्य की राह: क्या फिर होगी वापसी?
हालांकि, अंबानी और अडानी की संपत्ति में गिरावट हुई है, लेकिन इनके बिजनेस साम्राज्य को देखते हुए यह माना जा सकता है कि इनका पुनरुत्थान संभव है। रिलायंस इंडस्ट्रीज अपने टेलीकॉम और खुदरा क्षेत्र में विस्तार कर रही है, और अडानी समूह भी ग्रीन एनर्जी और अन्य परियोजनाओं में निवेश कर रहा है। इनके पास विविध व्यवसाय और नए अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता है, जिससे ये भविष्य में अपनी स्थिति को दोबारा मजबूत कर सकते हैं।
निष्कर्ष
अंबानी और अडानी का टॉप-15 अमीरों की लिस्ट से बाहर होना भारतीय व्यापार जगत के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह दर्शाता है कि वैश्विक आर्थिक घटनाएं, नियामकीय दबाव, और व्यापारिक अनिश्चितताएँ किसी भी बड़े उद्योगपति की संपत्ति को प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि, इन दोनों दिग्गजों के पास अपनी स्थिति को सुधारने के पर्याप्त संसाधन और अनुभव हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इन चुनौतियों से कैसे उबरते हैं।