नई दिल्ली,30 अक्टूबर। दक्षिण भारत के कर्नाटक में एक छोटा सा गांव है, जो आज भी दिवाली के अवसर पर अपने पूर्वजों को याद करते हुए सिसकता है। इतिहास के पन्नों में दर्ज एक दुखद अध्याय, जिसने यहां के लोगों के दिलों में गहरी चोट छोड़ी है, हर साल दिवाली के दिन इस गांव में ताजा हो जाती है। यह घटना 18वीं शताब्दी में घटित हुई थी, जब मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने इस गांव में 800 हिंदुओं का बेरहमी से नरसंहार किया था। इस त्रासदी के निशान इस गांव में आज भी महसूस किए जा सकते हैं, और दिवाली पर यहां के लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
टीपू सुल्तान का शासन और नरसंहार की कहानी
टीपू सुल्तान का शासनकाल एक ओर जहाँ मैसूर राज्य के विस्तार और विकास के लिए जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर यह हिंदू समुदाय के खिलाफ उसके द्वारा किए गए अत्याचारों के लिए भी कुख्यात है। कर्नाटक के इस गांव में उस समय हिंदू परिवार बसे थे, जो यहां शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। किंतु टीपू सुल्तान ने इस गांव पर हमला कर यहां के हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया। यह नरसंहार उस दौर की धार्मिक असहिष्णुता और सत्ता की क्रूरता को दर्शाता है।
टीपू सुल्तान के आदेश पर सैकड़ों निर्दोषों को मारा गया, और उनका जीवन समाप्त कर दिया गया। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उस दिन दिवाली का दिन था, और पूरे गांव में त्योहार की खुशियाँ थीं। लेकिन यह खुशी कुछ ही पलों में मातम में बदल गई जब टीपू सुल्तान की सेना ने गांव पर हमला कर दिया और एक के बाद एक लोगों को मार डाला।
दिवाली का त्यौहार और पूर्वजों की याद
इस घटना के बाद से दिवाली के दिन इस गांव में एक अजीब सा माहौल रहता है। जहां पूरा देश दिवाली के दीपों से रोशन होता है, वहीं इस गांव में दीप जलाने की बजाय लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। यहां के लोग मानते हैं कि दिवाली के दिन उनके पूर्वजों की आत्मा उन्हें आशीर्वाद देने के लिए वापस आती हैं, और उनके लिए इस दिन का मतलब अपनी परंपरा और इतिहास को याद करना है।
गांव की नई पीढ़ी और इतिहास से जुड़ाव
इस गांव की नई पीढ़ी भी अपने पूर्वजों की इस दु:खद गाथा को जानती है और उसे अपने इतिहास का हिस्सा मानती है। यहां के लोग अपने बच्चों को भी इस इतिहास से अवगत कराते हैं ताकि वे समझ सकें कि दिवाली के दिन उनके गांव का शोक किस कारण है। इस गांव के लोग दिवाली के दिन प्रार्थना करते हैं कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और भविष्य में सभी धर्मों और समुदायों के लोग शांतिपूर्ण जीवन जी सकें।
समापन
कर्नाटक का यह गांव हमें याद दिलाता है कि इतिहास में कुछ ऐसे भी क्षण होते हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। दिवाली का यह पर्व जो आमतौर पर खुशियों और रौशनी का प्रतीक है, इस गांव के लिए एक गंभीर दिन बन चुका है। अपने पूर्वजों की याद में यह गांव आज भी आंसू बहाता है, और यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि धार्मिक सहिष्णुता और आपसी समझ का महत्व क्या होता है।
यह दिवाली हम सभी के लिए यह संदेश लेकर आए कि हम अपने इतिहास से सीखें, और सभी धर्मों और संस्कृतियों का सम्मान करते हुए एक-दूसरे के साथ सहिष्णुता और प्रेम का भाव रखें।