उत्तर प्रदेश उपचुनाव: कांग्रेस से सीट शेयरिंग पर अखिलेश यादव की दूरी, सपा का अकेले लड़ने का फैसला

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नई दिल्ली,25 अक्टूबर। उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाई। कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव की नीयत स्पष्ट नहीं दिख रही थी, जिसके चलते सपा ने उपचुनाव में सभी सीटों पर अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया है। यह निर्णय यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है, क्योंकि कई मौकों पर सपा और कांग्रेस एक साथ आकर चुनाव लड़ते रहे हैं।

सीट शेयरिंग को लेकर अनिश्चितता
उत्तर प्रदेश में सीट शेयरिंग पर सपा और कांग्रेस के बीच कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन किसी स्पष्ट नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। कांग्रेस ने कुछ सीटों पर अपनी दावेदारी जताई थी और उम्मीद की थी कि सपा उनके साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाएगी। लेकिन अखिलेश यादव की तरफ से साफ संकेत नहीं मिलने और बातचीत में देरी के चलते कांग्रेस ने भी अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया।

सपा का अकेले लड़ने का निर्णय
अखिलेश यादव ने अंततः यह फैसला किया कि सपा सभी 9 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। सपा ने यह तय किया कि वह अपने दम पर उपचुनाव में उतरेगी और कांग्रेस के साथ गठबंधन की बजाय अपने आधार को मजबूत करेगी। सपा का मानना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए पार्टी का स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना जरूरी है।

कांग्रेस के लिए संभावित प्रभाव
कांग्रेस के लिए यह निर्णय एक चुनौती के रूप में सामने आया है। यूपी में पहले ही कमजोर स्थिति में होने के कारण कांग्रेस को इस उपचुनाव में एक मजबूत सहयोगी की जरूरत थी। सपा के साथ सीट शेयरिंग न होने से कांग्रेस को अब उन क्षेत्रों में अकेले ही मुकाबला करना होगा, जहां भाजपा की मजबूत पकड़ है। इस फैसले के बाद कांग्रेस को अपने चुनावी अभियान को फिर से संगठित करने की आवश्यकता होगी।

भाजपा के लिए लाभ का अवसर?
सपा और कांग्रेस के बीच तालमेल न होने का सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। एकजुट विपक्ष का सामना करने की बजाय भाजपा अब अलग-अलग विपक्षी दलों से मुकाबला करेगी, जिससे उसके लिए उपचुनाव में अपनी स्थिति को बनाए रखना आसान हो सकता है। भाजपा के पास इस स्थिति का लाभ उठाने का मौका है और वे मतदाताओं के बीच विपक्ष की एकता की कमी का मुद्दा उठा सकते हैं।

निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में उपचुनाव का यह दौर सपा और कांग्रेस के संबंधों की परीक्षा भी साबित हो सकता है। अखिलेश यादव का कांग्रेस से दूरी बनाकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला यूपी की राजनीति में नए समीकरण बना सकता है। उपचुनाव के नतीजे यह संकेत देंगे कि विपक्ष की एकता के बिना भाजपा के खिलाफ मजबूत चुनौती देना कितना कठिन हो सकता है।

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