नई दिल्ली,14 अक्टूबर। केरल की पिनाराई विजयन सरकार एक बार फिर केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ खड़ी हो गई है। राज्य सरकार ने अब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) के खिलाफ विधानसभा में बिल पेश करने की योजना बनाई है। यह कदम केंद्र सरकार की उस पहल का विरोध है, जिसके तहत देशभर में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का प्रस्ताव है। इससे पहले भी केरल सरकार कई केंद्रीय फैसलों के खिलाफ आवाज उठा चुकी है और अब यह मुद्दा राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में है।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुद्दा:
केंद्र सरकार ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की अवधारणा को लेकर पिछले कुछ समय से विचार किया है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य है कि लोकसभा और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, जिससे चुनावी खर्च में कमी आए और चुनावी प्रक्रियाओं में सरलता आ सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश के लिए एक फायदेमंद कदम बताया है, लेकिन इसके साथ ही इस पर विरोध की आवाजें भी उठी हैं।
केरल सरकार का विरोध:
केरल की पिनाराई विजयन सरकार ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताते हुए कहा है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से राज्य सरकारों की स्वायत्तता खतरे में पड़ जाएगी। उनका मानना है कि यह कदम केंद्र द्वारा राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप के समान है और इससे राज्यों की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।
विजयन सरकार ने राज्य विधानसभा में इस प्रस्ताव के खिलाफ बिल पेश करने का निर्णय लिया है। यह बिल केंद्र के फैसले के विरोध में राज्य सरकार की सख्त नीति को दर्शाता है। इससे पहले भी केरल सरकार नागरिकता संशोधन कानून (CAA), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और कई अन्य मुद्दों पर केंद्र के खिलाफ खड़ी हो चुकी है।
संघीय ढांचे पर बहस:
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव ने देश में संघीय ढांचे को लेकर बहस छेड़ दी है। केरल सरकार का कहना है कि यह व्यवस्था राज्यों के अधिकारों को कमजोर कर सकती है और केंद्र सरकार को अधिक शक्तिशाली बना सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान कम हो सकता है और राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे हावी हो सकते हैं।
विपक्षी दलों का तर्क है कि प्रत्येक राज्य की अपनी राजनीतिक परिस्थितियाँ और चुनौतियाँ होती हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर अलग-अलग चुनाव कराए जाने चाहिए। साथ ही, एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों की बचत तो हो सकती है, लेकिन लोकतंत्र की गहराई और व्यापकता प्रभावित हो सकती है।
पिनाराई विजयन सरकार की रणनीति:
केरल सरकार पहले भी केंद्रीय योजनाओं और फैसलों के खिलाफ आवाज उठाती रही है, और यह कदम उसी दिशा में एक और कड़ी है। पिनाराई विजयन सरकार की नीति केंद्र की नीतियों पर सवाल उठाने की रही है, खासकर जब वे राज्य के अधिकारों और स्वायत्तता को प्रभावित करती हैं। इस बार भी, राज्य सरकार ने विधानसभा में बिल पेश करने का निर्णय लेकर यह संदेश दिया है कि वह अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूती से खड़ी है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं:
केरल सरकार के इस फैसले पर विभिन्न राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ भी आ रही हैं। विपक्षी दलों ने विजयन सरकार के इस कदम की सराहना की है और इसे संघीय ढांचे की रक्षा के लिए एक सही कदम बताया है। वहीं, भाजपा और केंद्र सरकार के समर्थक दलों ने इस फैसले की आलोचना की है और इसे राज्य की राजनीति में भ्रम पैदा करने वाला बताया है। उनका कहना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से चुनावी प्रक्रिया में सुधार होगा और देश में स्थिरता आएगी।
निष्कर्ष:
केरल सरकार का ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के खिलाफ बिल पेश करने का फैसला यह दर्शाता है कि राज्य सरकार केंद्र की नीतियों के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट कर रही है। यह कदम राज्य और केंद्र सरकार के बीच जारी शक्ति संतुलन की बहस को और गहरा करेगा। आगामी समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर अन्य राज्य और राजनीतिक दल किस प्रकार प्रतिक्रिया देते हैं, और क्या यह बहस देश की संघीय संरचना पर कोई बड़ा प्रभाव डालती है।