नई दिल्ली,7 अक्टूबर।इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष को एक साल पूरा हो चुका है, और इस युद्ध ने केवल मध्य पूर्व को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर गहरा प्रभाव डाला है। इस एक साल के दौरान, हजारों निर्दोष लोग मारे गए, गाजा और इजरायल के शहरों में विनाशकारी हमले हुए, और यह युद्ध क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ बनकर उभरा है। खासकर भारत सहित दुनिया के कई देशों पर इस युद्ध का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ा है। आइए जानें कि इस संघर्ष ने विश्व पर और विशेष रूप से भारत पर क्या प्रभाव डाला है।
मध्य पूर्व में संकट की गहराई
इजरायल और हमास के बीच चल रहे इस संघर्ष ने पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ा दी है। दक्षिणी लेबनान, सीरिया, और ईरान जैसे देशों से इजरायल पर हमले होने लगे, जिससे पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। ईरान और सऊदी अरब जैसे देश अपनी-अपनी विचारधाराओं और रणनीतिक हितों के अनुसार इस संघर्ष में भूमिका निभाते रहे हैं। इस युद्ध ने वैश्विक भू-राजनीति को भी प्रभावित किया है, जहां अमेरिका और उसके सहयोगी इजरायल का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कुछ देश हमास और फिलिस्तीनी संगठनों के पक्ष में खड़े हैं।
वैश्विक ऊर्जा बाजार पर प्रभाव
मध्य पूर्व का क्षेत्र तेल और गैस उत्पादन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, और इस संघर्ष ने ऊर्जा बाजार पर भी असर डाला है। युद्ध के चलते तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला, जिसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ा। तेल की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होने की आशंका से अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता आई, जिससे कई देशों के आर्थिक हालात प्रभावित हुए।
भारत पर प्रभाव
भारत, जो इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के साथ मजबूत कूटनीतिक संबंध बनाए रखता है, ने इस युद्ध के चलते संतुलित नीति अपनाने की कोशिश की है। भारत ने इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया, जबकि साथ ही फिलिस्तीनी नागरिकों के अधिकारों और शांति प्रक्रिया की भी वकालत की।
कूटनीतिक संतुलन
भारत के लिए यह संघर्ष कूटनीतिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण रहा है। एक ओर, इजरायल भारत का प्रमुख रक्षा और तकनीकी सहयोगी है, जबकि दूसरी ओर, फिलिस्तीन के प्रति भारत की ऐतिहासिक सहानुभूति और संबंध रहे हैं। भारत ने इस संघर्ष के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों से शांति और संयम की अपील की। भारत के लिए यह संतुलन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत के अरब देशों के साथ भी गहरे व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध हैं, जो इस मुद्दे पर संवेदनशील हैं।
तेल आपूर्ति पर प्रभाव
मध्य पूर्व से तेल की आपूर्ति में आने वाले व्यवधानों का भारत पर भी सीधा असर पड़ा। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए काफी हद तक आयातित तेल पर निर्भर है, ने तेल की कीमतों में तेजी देखी, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा। तेल की कीमतों में वृद्धि का असर आम भारतीय नागरिकों पर भी पड़ा, जिससे पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ीं और महंगाई में इजाफा हुआ।
प्रवासियों की स्थिति
मध्य पूर्व में लाखों भारतीय काम करते हैं, खासकर खाड़ी देशों में। इस युद्ध ने भारतीय प्रवासियों के लिए भी चिंताजनक स्थिति पैदा की। हालांकि, युद्ध का सीधा प्रभाव खाड़ी देशों पर नहीं पड़ा, लेकिन वहां की अस्थिरता के कारण रोजगार और सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई। भारत सरकार ने अपने प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता बरती।
भविष्य की चुनौतियाँ
इजरायल-हमास संघर्ष के एक साल बाद भी शांति का कोई स्थायी समाधान नजर नहीं आ रहा है। दोनों पक्षों के बीच तनाव और हिंसा जारी है, और यह संघर्ष भविष्य में और भी गंभीर हो सकता है। भारत और दुनिया के अन्य देश इस स्थिति को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि इसका सीधा असर वैश्विक शांति, व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति पर पड़ सकता है।
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस संघर्ष में अपने रणनीतिक हितों को संतुलित रखना और वैश्विक मंच पर शांति स्थापना के लिए प्रयास करना है। मध्य पूर्व में शांति स्थापित करना न केवल इस क्षेत्र के लिए, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी बेहद जरूरी है।
निष्कर्ष
इजरायल-हमास युद्ध ने दुनिया और खासकर भारत पर कई तरह से असर डाला है। इस संघर्ष ने कूटनीति, अर्थव्यवस्था, और सुरक्षा के क्षेत्र में कई नई चुनौतियां खड़ी की हैं। एक साल बाद भी, यह सवाल बना हुआ है कि क्या इस संघर्ष का कोई स्थायी समाधान निकल सकता है, या फिर दुनिया को मध्य पूर्व के इस विवाद के और भी गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ेगा।