नई दिल्ली,27 सितम्बर। हाल ही में कर्नाटक सरकार ने फैसला किया है कि अब राज्य में CBI (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) को राज्य सरकार की सहमति के बिना जांच करने की अनुमति नहीं होगी। यह फैसला कई अन्य राज्यों की तरह कर्नाटक सरकार द्वारा भी उठाया गया कदम है, जहां केंद्र सरकार द्वारा संचालित एजेंसियों की कार्यवाही को सीमित किया गया है। इससे पहले महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ जैसी राज्य सरकारों ने भी इसी तरह के कदम उठाए थे।
CBI पर प्रतिबंध क्यों?
राज्य सरकारों का CBI पर प्रतिबंध लगाने का मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि उन्हें लगता है कि केंद्र सरकार इस एजेंसी का राजनीतिक दुरुपयोग कर रही है। कई राज्य सरकारें आरोप लगाती हैं कि CBI का उपयोग उनके खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध के लिए किया जा रहा है। विशेष रूप से वे राज्य जहां विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं, उन्हें लगता है कि केंद्र सरकार CBI का इस्तेमाल करके उनकी सरकारों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
CBI एक केंद्रीय एजेंसी है, जो अक्सर उच्च स्तरीय मामलों की जांच करती है। लेकिन राज्य सरकारों का कहना है कि केंद्र सरकार इसे कई बार राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए इस्तेमाल करती है, जिससे उनके अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण होता है। इसीलिए राज्य सरकारें CBI को बिना उनकी सहमति के जांच करने से रोकने के लिए ऐसे प्रतिबंध लगा रही हैं।
सवाल: ED पर रोक क्यों नहीं?
जहां CBI पर रोक लगाने के फैसले सुर्खियों में रहते हैं, वहीं प्रवर्तन निदेशालय (ED) पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। सवाल उठता है कि राज्य सरकारें केवल CBI पर ही प्रतिबंध क्यों लगाती हैं, जबकि ED जैसी एजेंसियों को जांच करने से नहीं रोकतीं।
इसका कारण यह है कि CBI की जांच प्रक्रिया के लिए राज्य सरकार की सहमति जरूरी होती है, जबकि ED की कार्यवाही मुख्य रूप से मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा उल्लंघनों से संबंधित होती है, जो केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ED की कार्यवाही सीधे केंद्रीय कानूनों के तहत होती है, इसलिए राज्य सरकारों के पास इसे रोकने का कोई स्पष्ट संवैधानिक आधार नहीं होता है।
राजनीतिक और कानूनी पहलू
राज्य सरकारों का यह मानना है कि केंद्र सरकार विपक्षी शासित राज्यों में CBI का अधिक उपयोग करके उनके राजनीतिक हितों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती है। इससे न केवल राज्यों के स्वायत्तता पर सवाल उठता है, बल्कि राजनीतिक सत्ता-संतुलन पर भी असर पड़ता है।
हालांकि, ED के मामलों में राज्य सरकारें इसे रोकने में असमर्थ होती हैं, क्योंकि यह सीधे वित्तीय अपराधों से संबंधित एजेंसी है, जो केंद्र के अधीन है। इसके अलावा, ED के पास व्यापक अधिकार होते हैं, और इसे रोकने के लिए राज्यों के पास उतने साधन उपलब्ध नहीं हैं जितने CBI के मामलों में होते हैं।
निष्कर्ष
कर्नाटक द्वारा CBI पर प्रतिबंध लगाना उन राज्यों की सूची में एक और नाम जोड़ता है जो केंद्र द्वारा संचालित एजेंसियों के राजनीतिक दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। हालांकि, यह देखने की बात है कि ED पर रोक लगाने का विकल्प राज्यों के पास नहीं है, और इस कारण ED का प्रभाव विपक्षी दलों पर जारी रहता है। यह स्थिति भविष्य में केंद्र-राज्य संबंधों और राजनीतिक संतुलन को कैसे प्रभावित करेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।