सुप्रीम कोर्ट का फैसला: ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ कविता में कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं

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नई दिल्ली,28 मार्च। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस की तरफ से दर्ज FIR सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रद्द कर दी। यह FIR उनके इंस्टाग्राम पोस्ट ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ कविता को लेकर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने फैसले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए पुलिस और निचली अदालतों की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए।

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा, “कोई अपराध नहीं हुआ है। जब आरोप लिखित रूप में हों, तो पुलिस अधिकारी को इसे ध्यान से पढ़ना चाहिए। बोले गए शब्दों का सही अर्थ समझना जरूरी है। कविता में हिंसा का कोई संदेश नहीं है, बल्कि यह अहिंसा को बढ़ावा देती है।’

जस्टिस ओका ने पुलिस की कार्यशैली पर कहा, “संविधान के 75 साल बाद भी पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व समझना चाहिए। यह अधिकार तब भी संरक्षित किया जाना चाहिए, जब बड़ी संख्या में लोग इसे नापसंद करें।”

कविता में कोई विवादित बात नहीं- सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस अभय ओका ने कहा कि भले ही न्यायाधीशों को कोई बात पसंद न आए, फिर भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संवैधानिक संरक्षण देना जरूरी है। मुक्त भाषण सबसे मूल्यवान अधिकारों में से एक है। जब पुलिस इसका सम्मान नहीं करती, तो न्यायालयों को आगे आकर इसकी रक्षा करनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि भले ही बहुत से लोग किसी दूसरे के विचारों को नापसंद करते हों, लेकिन विचारों को व्यक्त करने के व्यक्ति के अधिकार का सम्मान और संरक्षण किया जाना चाहिए। कविता, नाटक, फिल्म, व्यंग्य और कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है।

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