केरल ,1 मार्च। केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यौन अपराधों सहित अन्य आपराधिक मामलों में यह मान लेना कि शिकायतकर्ता महिला द्वारा कही गई हर बात सत्य है, उचित नहीं है। न्यायमूर्ति पी. वी. कुन्हीकृष्णन ने एक पूर्व महिला कर्मचारी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायालय ने कहा कि वर्तमान समय में ऐसे मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसलिए, यह आवश्यक है कि पुलिस न केवल शिकायतकर्ता के बयान की जांच करे, बल्कि आरोपी के पक्ष को भी गंभीरता से सुने और जांच करे। सिर्फ इसलिए कि शिकायतकर्ता महिला है, यह मान लेना कि उसका हर बयान सत्य है, सही नहीं है।
पुलिस की जिम्मेदारी:
कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे जांच के दौरान सतर्क और चौकस रहें, ताकि किसी निर्दोष व्यक्ति को झूठे आरोपों के कारण नुकसान न हो। यदि पुलिस को लगता है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं, तो वे शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकते हैं, क्योंकि कानून इसकी अनुमति देता है।
मामले का संदर्भ:
यह टिप्पणी उस मामले में की गई, जहां एक महिला कर्मचारी ने अपने प्रबंधक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। वहीं, आरोपी ने पुलिस से शिकायत की थी कि नौकरी से निकाले जाने के बाद महिला ने उसे गाली दी और धमकियां दीं। आरोपी ने इस संबंध में एक पेन ड्राइव में महिला की कथित बातें रिकॉर्ड करके पुलिस को सौंपी थी। कोर्ट ने कहा कि यह एक ऐसा मामला था, जिसमें जांच अधिकारी को आरोपी की शिकायत की भी जांच करनी चाहिए थी।
केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, ताकि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को झूठे आरोपों के कारण सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान का नुकसान न हो।