नई दिल्ली,19 फरवरी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत स्कूलों में तीन भाषाएं पढ़ाने के नियम पर केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार में घमासान छिड़ा हुआ है. तीन दिन पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने थ्री लैंग्वेज पॉलिसी लागू न करने के चलते केंद्र पर ब्लैकमेलिंग और धमकी देने का आरोप लगाया. केवल यही नहीं, स्टालिन ने केंद्र पर हिंदी भाषा थोपने और फंड जारी ना किए जाने का आरोप लगाया. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसका जवाब दिया. उन्होंने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. इससे तमिलनाडु में 53 सालों के लंबे अंतराल के बाद इस विषय पर बहस शुरू हो गई है. सत्तारूढ़ एआईएडीएमके ने त्रिभाषा सूत्र को पूरी तरह से खारिज कर दिया और दो भाषा नीति को अपनाने की बात की है.
यह विवाद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के एक बयान के बाद भड़का है. उन्होंने पिछले हफ्ते वाराणसी में कहा था कि तमिलनाडु को भारतीय संविधान के अनुसार चलना होगा और थ्री लैंग्वेज पॉलिसी कानून का हिस्सा है. जब तक तमिलनाडु तीन भाषाओं की नीति को स्वीकार नहीं करता, तब तक राज्य को केंद्र से शिक्षा संबंधित फंड नहीं मिलेगा. इसके बाद, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि तमिल लोग ब्लैकमेलिंग या धमकी सहन नहीं करेंगे. अगर राज्य को शिक्षा के फंड से वंचित किया गया, तो केंद्र को तमिलों के मजबूत विरोध का सामना करना पड़ेगा.
क्या है त्रिभाषा फॉर्मूला?
त्रिभाषा फॉर्मूला भारत में भाषाई शिक्षा से जुड़ी एक नीति है, जिसे पहली बार 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में प्रस्तावित किया गया था. इसका उद्देश्य छात्रों को तीन भाषाओं में शिक्षित करना था. राज्य की क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा, हिंदी और अंग्रेजी. कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा (गैर-हिंदी राज्यों के लिए हिंदी, हिंदी राज्यों के लिए कोई दक्षिण भारतीय भाषा). इस फॉर्मूले को 1986 और 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी जारी रखा गया, लेकिन हर राज्य ने इसे अलग तरीके से लागू किया.