नई दिल्ली,19 फरवरी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में चुनावों के लिए अमेरिकी फंडिंग पर सवाल उठाते हुए कहा है कि भारत के पास पर्याप्त धन है, फिर भी हम उन्हें 21 मिलियन डॉलर (लगभग 182 करोड़ रुपये) क्यों दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जो सबसे अधिक टैरिफ लगाते हैं, जिससे वहां व्यापार करना मुश्किल हो जाता है। ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए भी इस फंडिंग पर आपत्ति जताई।
इससे पहले, एलन मस्क के नेतृत्व वाले सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने भारत में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए निर्धारित 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग रद्द करने की घोषणा की थी। इस फैसले के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने इसे भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप करार दिया। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इस फंडिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह स्पष्ट रूप से भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप है और इससे सत्ताधारी पार्टी को कोई लाभ नहीं होगा।
वहीं, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने स्पष्ट किया कि 2012 में उनके कार्यकाल के दौरान चुनाव आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें किसी भी वित्तीय सहायता का उल्लेख नहीं था। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स को गलत बताते हुए कहा कि इस समझौते में किसी भी पक्ष पर वित्तीय या कानूनी जिम्मेदारी नहीं थी।
इस विवाद के बीच, कांग्रेस पार्टी ने भी भारत की चुनावी प्रक्रिया में विदेशी हस्तक्षेप की निंदा की है और मोदी सरकार से इस मामले की जांच करने का आग्रह किया है। कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा कि हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में किसी भी तरह का विदेशी हस्तक्षेप अनुचित है और इसकी जांच होनी चाहिए।
यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के कुछ दिनों बाद सामने आया है, जहां उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप के साथ द्विपक्षीय वार्ता की थी। इस दौरान व्यापार, रक्षा और ऊर्जा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई थी।
इस घटनाक्रम ने भारत-अमेरिका संबंधों में नई बहस छेड़ दी है, जहां एक ओर अमेरिकी फंडिंग पर सवाल उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय चुनावी प्रक्रिया में विदेशी हस्तक्षेप के आरोपों की जांच की मांग की जा रही है।