नई दिल्ली,14 फरवरी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ईशा फाउंडेशन केस से जुड़ी याचिका पर सुनवाई की। यह याचिका तमिलनाडु पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की तरफ से लगाई गई है। याचिकाकर्ता की मांग है कि, दिसंबर 2022 में मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन को जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द करने का आदेश दिया था। इस आदेश पर रोक लगाई जाए।
जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि, आप कैसे कह सकते हैं कि योग सेंटर शैक्षणिक संस्थान नहीं है? जब राज्य दो साल बाद अदालत का दरवाजा खटखटाता है, तो हमें संदेह होता है।
मामला कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी पहाड़ियों पर बने ईशा फाउंडेशन योग सेंटर से जुड़ा है। तमिलनाडु सरकार ने पॉल्यूशन क्लियरेंस लिए बिना कंस्ट्रक्शन करने के लिए ईशा फाउंडेशन को 19 नवंबर 2021 को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
पहला पक्ष: ईशा फाउंडेशन- 3 तर्क
- यह कंस्ट्रक्शन वर्क 1994 से चल रहा है। उस वक्त पर्यावरण से जुड़े कोई नियम भी नहीं थे।
- योग सेंटर के नाते यह एक शैक्षणिक संस्थान के दायरे में आता है।
- 2014 में केंद्र सरकार के नियम के अनुसार सभी शैक्षणिक संस्थान, छात्रावास के निर्माण कार्य से पहले अनिवार्य पर्यावरण से जुड़ी मंजूरी लेना जरूरी नहीं है।
दूसरा पक्ष: राज्य सरकार- एक दलील राज्य सरकार ने इस तर्क का विरोध किया कि ईशा फाउंडेशन ‘शैक्षणिक संस्थानों’ के दायरे में आता है। हालांकि, राज्य सरकार ने फिर भी कहा कि, अगर मान लें कि यह एक शैक्षणिक संस्थान है। तो यह नियम सिर्फ 10,000 वर्ग मीटर के दायरे में लागू होगा जबकि योग सेंटर 2 लाख वर्ग मीटर में फैला है।
तीसरा पक्ष: केंद्र सरकार- 2 तर्क
- ईशा फाउंडेशन को पहले से पर्यावरणीय मंजूरी लेने से छूट दी गई थी, क्योंकि यह शिक्षा को बढ़ावा देने में लगा हुआ था। जब केस लंबित था, तब केंद्र ने कथित तौर पर 2022 में एक नोटिफिकेशन भी जारी किया।
- जिसमें लिखा गया कि मेंटल, मोरल, सोशल और फिजिकल डेवलेपमेंट से जुड़ी ट्रेनिंग देने वाले संस्थानों को शैक्षणिक संस्थान के रूप में माना जाएगा।
मद्रास हाईकोर्ट का आदेश क्या था 2022 में, हाईकोर्ट ने विवादित कारण बताओ नोटिस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि फाउंडेशन समूह योग को बढ़ावा देने के लिए निर्माण कार्य कर रहा था, इसलिए यह एक “शैक्षणिक संस्थान” की परिभाषा के अंतर्गत आता है।
सुनवाई के दौरान, हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर वह कानून क्यों बना रही है जब खुद ही छूट देनी पड़ती है। अपने पक्ष का बचाव करते हुए, केंद्र ने कहा कि यह संतुलन बनाने और उत्पीड़न को रोकने के लिए था।