नई दिल्ली,13 फरवरी। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के डेटा को डिलीट या रीलोड करने पर चुनाव आयोग को रोक लगाते हुए निर्देश दिया है कि सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने तक ईवीएम के डेटा में कोई बदलाव न किया जाए।
एडीआर की याचिका पर सुनवाई
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि ईवीएम के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2024 के आदेश के अनुरूप नहीं है। एडीआर ने मांग की थी कि ईवीएम की जली हुई मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट्स की जांच की अनुमति दी जाए।
कोर्ट के निर्देश
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव आयोग से कहा, “डेटा मिटाएं नहीं। डेटा को फिर से लोड न करें।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनका पूर्व आदेश केवल इतना था कि एक इंजीनियर आकर उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रमाणित करे कि माइक्रोचिप के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
सत्यापन शुल्क पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम सत्यापन के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित ₹40,000 के शुल्क को “बहुत ज्यादा” बताते हुए इस पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया। कोर्ट ने आयोग से इस संबंध में एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें ईवीएम सत्यापन के लिए अपनाए गए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की व्याख्या की जाए।
अगली सुनवाई
मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तुत विवरणों पर विचार किया जाएगा।
पृष्ठभूमि
पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवार प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5% ईवीएम की जली हुई मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर की जांच और सत्यापन का अनुरोध कर सकते हैं। यह अनुरोध परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर किया जा सकता है, और यदि ईवीएम में छेड़छाड़ पाई जाती है, तो शुल्क वापस किया जाएगा।
इस आदेश के बाद, एडीआर ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की वर्तमान प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप यह याचिका दायर की गई।