नई दिल्ली,20 जनवरी। भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा और लोकतांत्रिक संविधान है, जिसकी नींव देश के महान नेताओं और विचारकों ने रखी थी। लेकिन आज, इसे बचाने के नाम पर जो राजनीतिक ड्रामा हो रहा है, वह संविधान की मूल भावना और इसके निर्माताओं के योगदान का अपमान है। हाल ही में पटना में आयोजित “संविधान रक्षा सम्मेलन” में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का प्रदर्शन इसी का एक उदाहरण है।
संविधान बचाने का खोखला दावा
पटना में आयोजित सम्मेलन में राहुल गांधी ने संविधान की रक्षा का दावा करते हुए बड़े-बड़े भाषण दिए। लेकिन उनका यह दावा तब खोखला साबित हुआ जब उन्होंने बिहार के उन महान नेताओं का जिक्र करना भी उचित नहीं समझा, जिन्होंने संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी।
राजेंद्र प्रसाद और सच्चिदानंद सिन्हा का अपमान
- संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा और स्थायी अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाम राहुल गांधी के भाषण में नहीं था।
- पटना में संविधान लेकर दाखिल होने वाले राहुल गांधी को यह पता नहीं था कि सच्चिदानंद सिन्हा पटना के ही रहने वाले थे और उनके स्वास्थ्य के कारण संविधान को दिल्ली से पटना लाकर उनके हस्ताक्षर कराए गए थे।
- संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जो देश के पहले राष्ट्रपति भी थे, उनकी समाधि पर जाने की जरूरत राहुल गांधी ने महसूस नहीं की, जबकि उनका काफिला समाधि के सामने से ही गुजरा।
तेजस्वी यादव से मुलाकात, लेकिन संविधान निर्माताओं को भुलाया
राहुल गांधी ने संविधान की दुहाई देने के साथ ही तेजस्वी यादव से मुलाकात की। तेजस्वी उसी यादव परिवार के वारिस हैं, जिन पर संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन जब बात संविधान सभा के नेताओं की आई, तो राहुल गांधी ने उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया।
संविधान का इतिहास और राहुल की अनदेखी
- क्या राहुल गांधी जानते हैं कि संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा थे और बाद में स्थायी अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को चुना गया?
- क्या राहुल गांधी को पता है कि पटना, संविधान के इतिहास का अहम हिस्सा है और इसके बिना संविधान की बात अधूरी है?
- यह विडंबना है कि जो नेता संविधान बचाने का दावा कर रहे हैं, वे इसके इतिहास और इससे जुड़े नेताओं का सम्मान करना भूल जाते हैं।
संविधान दिखाने की राजनीति
राहुल गांधी ने हाथ में संविधान लेकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की। लेकिन यह केवल एक प्रतीकात्मक नौटंकी बनकर रह गई।
- जब एक नेता संविधान की रक्षा की बात करता है, लेकिन उसके निर्माण में शामिल महान हस्तियों का जिक्र करना भूल जाता है, तो यह उसकी अज्ञानता और दिखावटी राजनीति को उजागर करता है।
- संविधान को बचाने की दुहाई देना आसान है, लेकिन इसे समझने और इसके मूल्यों का पालन करने के लिए गहरी जानकारी और ईमानदारी की जरूरत होती है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी का “संविधान बचाओ” अभियान केवल एक राजनीतिक ड्रामा बनकर रह गया है। यह एक ऐसी कोशिश है जो केवल जनता को भ्रमित करने के लिए की जा रही है। यदि उन्हें वास्तव में संविधान और इसके निर्माताओं की चिंता होती, तो वे सच्चिदानंद सिन्हा और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं का सम्मान करते और उनके योगदान को याद करते।
संविधान की रक्षा केवल शब्दों से नहीं, बल्कि इसके मूल्यों और आदर्शों को समझने और उन्हें जीवन में अपनाने से होती है। राहुल गांधी और उनके सहयोगियों को इस सच्चाई को समझने की जरूरत है।