नई दिल्ली,10 जनवरी। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आते ही राजनीतिक गलियारों में पूर्वांचली बनाम अन्य समुदाय की राजनीति गरमा गई है। राजधानी दिल्ली में पूर्वांचली मतदाताओं की संख्या काफी प्रभावशाली है, और सभी राजनीतिक दल इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटे हैं। सवाल उठता है कि आखिर इस ‘पूर्वांचली बनाम अन्य’ की जंग को हवा कौन दे रहा है और इससे किसे राजनीतिक लाभ हो सकता है?
दिल्ली में पूर्वांचली समुदाय का प्रभाव
दिल्ली की करीब 70 विधानसभा सीटों में से 30 से ज्यादा सीटों पर पूर्वांचली वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड आदि राज्यों से आकर दिल्ली में बसे पूर्वांचली लोग खासकर उत्तर-पूर्वी और पूर्वी दिल्ली में बड़ी संख्या में रहते हैं। यही वजह है कि हर चुनाव में राजनीतिक दल इस समुदाय को साधने के लिए अलग-अलग रणनीतियाँ बनाते हैं।
पूर्वांचली बनाम अन्य की राजनीति को हवा कौन दे रहा है?
- भाजपा (BJP):
भाजपा ने पूर्वांचली वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए कई कदम उठाए हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद मनोज तिवारी खुद पूर्वांचली समुदाय से आते हैं और इसी आधार पर भाजपा ने कई बार पूर्वांचली गौरव कार्यक्रम और सम्मान यात्राएँ आयोजित की हैं। भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि आम आदमी पार्टी (AAP) पूर्वांचलियों के हितों की अनदेखी कर रही है। - आम आदमी पार्टी (AAP):
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली में मुफ्त पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत कर पूर्वांचली समुदाय को लुभाने की कोशिश की है। हालांकि हाल ही में केजरीवाल के एक बयान पर विवाद खड़ा हो गया, जिसे पूर्वांचलियों के खिलाफ माना गया। भाजपा ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। - कांग्रेस (Congress):
कांग्रेस ने भी पूर्वांचली वोट बैंक को साधने के लिए स्थानीय स्तर पर नेताओं को सक्रिय किया है। हालांकि, दिल्ली में कांग्रेस की पकड़ कमजोर हो चुकी है, लेकिन वह अपनी खोई हुई जमीन पाने की कोशिश कर रही है।
किसे होगा फायदा?
- भाजपा को लाभ: भाजपा ने मनोज तिवारी जैसे पूर्वांचली नेता को आगे रखकर पूर्वांचली समुदाय को जोड़ने की कोशिश की है। यदि ‘पूर्वांचली बनाम अन्य’ की बहस तेज होती है, तो भाजपा को सीधे तौर पर इसका फायदा मिल सकता है। भाजपा इस मुद्दे को आम आदमी पार्टी की विफलता के रूप में पेश कर सकती है।
- AAP को नुकसान: अगर यह मुद्दा बड़ा बनता है तो आम आदमी पार्टी की छवि पर असर पड़ सकता है। पूर्वांचली समुदाय का एक बड़ा वर्ग AAP से नाराज हो सकता है, जिससे भाजपा को बढ़त मिल सकती है।
- कांग्रेस का सीमित प्रभाव: कांग्रेस इस मुद्दे से ज्यादा प्रभावित नहीं होगी क्योंकि उसकी पकड़ पहले से ही कमजोर है, लेकिन वह भाजपा और आप की लड़ाई का फायदा उठाकर कुछ सीटें निकाल सकती है।
क्या दिल्ली की राजनीति में बढ़ेगा जातीय ध्रुवीकरण?
पूर्वांचली बनाम अन्य की राजनीति से दिल्ली में जातीय ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। इससे विकास और जनहित के मुद्दे पीछे छूट सकते हैं और पहचान आधारित राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है।
निष्कर्ष
दिल्ली चुनावों में पूर्वांचली बनाम अन्य की जंग को हवा देने में भाजपा और आप दोनों की रणनीति नजर आ रही है। जहां भाजपा इस मुद्दे को भुनाने में जुटी है, वहीं आप को इससे अपनी छवि को बचाने की चुनौती है। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह जातीय समीकरण किसके पक्ष में जाता है और दिल्ली की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है।