वाशिंगटन ,07 जनवरी। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा है कि अमेरिकी सरकार भारतीय परमाणु संस्थाओं पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की प्रक्रिया में है ताकि भारत के साथ ऊर्जा संबंध स्थापित किए जा सकें. 20 वर्ष पुराने ऐतिहासिक परमाणु समझौते को मजबूती मिल सके.
दरअसल भारत अपनी ऊर्जा की बड़े पैमाने पर आपूर्ति परमाणु बिजली घरों के जरिए करता है. 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौते के तहत अमेरिका को भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी बेचने की अनुमति दी गई थी. लेकिन इसकी शर्तें ऐसी थीं कि इसमें अड़चन आती रही, ये लागू नहीं हो सका. जिन नियमों के कारण इस समझौते में अड़चन आ रही थी, अब अमेरिका उन्हें हटाने की बात कर रहा है.
सुलिवन ने दो दिवसीय यात्रा के दूसरे दिन नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका अब उन दीर्घकालिक नियमों को हटाने के लिए आवश्यक कदमों को अंतिम रूप दे रहा है, जिनके कारण भारत की अग्रणी परमाणु इकाइयों और अमेरिकी कंपनियों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग में बाधा आ रही है.”
भारत ने 1998 में क्या किया था जो अमेरिका ने भारत की कई संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए?
– भारत ने 11 और 13 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किए. इस परीक्षण को ऑपरेशन शक्ति के नाम से जाना गया था. हालांकि इसके बाद कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. अमेरिका अमेरिका ने तब 200 से अधिक भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिए. ज्यादातर देशों ने भारत पर लगाए ये प्रतिबंध हटा लिए हैं. अमेरिका ने भी द्विपक्षीय संबंधों के विकसित होने के बाद कई संस्थाओं को इस सूची से हटा दिया. जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब अमेरिका के साथ एक परमाणु समझौता हुआ लेकिन उसकी कुछ कड़ी शर्तों पर भारत को एतराज था, जिस कारण ये समझौता अधर में लटक गया. भारत और अमेरिका ने मार्च 2006 में असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये लेकिन भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध किसी भी सहयोग में बाधा बने रहे.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का चार साल का कार्यकाल 20 जनवरी को समाप्त होगा, उन्होंने पीएम मोदी को एक पत्र भेजकर भारत-अमेरिका संबंधों में वृद्धि को याद किया. ये पत्र अमेरिकी एनएसए सुलिवन भारत लेकर आए. अब अमेरिका भारतीय कंपनियों को प्रतिबंधित इकाई सूची से हटाने के लिए अपने कार्यवाहियों को अंतिम रूप दे रहा है ताकि असैन्य परमाणु क्षेत्र में सहयोग की अनुमति मिल सके. इसे भारत की की अग्रणी परमाणु संस्थाओं और अमेरिकी कंपनियों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग शुरू हो जाएगा.