पटना,28 दिसंबर। एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में अमित शाह का नीतीश के नेतृत्व को लेकर बयान 16 दिसंबर को आया. उसके बाद संसद में अमित शाह ने अंबेडकर को लेकर बयान दिया. उनके भाषण को अंबेडकर का अपमान बता कर आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने नीतीश कुमार को पत्र लिखा. इसके बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार का अचानक अस्वस्थ हो जाना. एनडीए की बैठक के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल की ओर से नीतीश के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने संबंधी बयान, फिर केंद्रीय नेतृत्व के फैसले की बात कह कर जायसवाल का बयान से पलटना. भाजपा कोर कमेटी की अचानक दिल्ली में बैठक और 8 जनवरी को अमित शाह के बिहार आने का प्लान. सप्ताह भर के भीतर का यह सियासी घटनाक्रम है.
नीतीश की चुप्पी से अटकलें तेज
इन सबसे अलग नीतीश कुमार की चुप्पी. खामोशी मानवीय स्वभाव के खतरनाक फलाफल का अक्सर संकेत साबित होता है. खासकर नीतीश की खामोशी अब तक ऐसी ही साबित होती रही है. पूर्व में इसका अनुभव लोगों को हो चुका है. यही वजह है कि पटना से लेकर दिल्ली तक बिहार की सियासत में फिर एक बदलाव की लोग आहट महसूस कर रहे हैं. कयास लग रहे हैं कि नीतीश कुमार फिर पाला बदल करेंगे. जाहिर-सी बात है कि अगर वे ऐसा करेंगे तो उनका ठिकाना फिर इंडिया ब्लाक ही होगा. ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए यह शुभ नहीं होगा.
किस्मत के धनी हैं नीतीश कुमार
वैसे एक सच यह है भी कि नीतीश कमजोर होकर भी सीएम बनने की क्षमता खराब हालत में भी रखते हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आगे भी वे जब तक चाहें सीएम बने रहेंगे. भाजपा के साथ रहने पर उन्हें सीएम बनने में जितनी आसानी होगी, उतनी ही ‘इंडिया’ के साथ जाने पर यह मुश्किल होगा. सच कहें तो असंभव होगा. मौजूदा स्थिति से अनुमान लगा लीजिए. अपने 43 विधायकों को लेकर वे सरकार से हट जाएं तो कोई भी दल या गठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगा. भाजपा अपने जन्मजात शत्रु आरजेडी से हाथ तो मिला नहीं सकती. आरजेडी के लिए भी ऐसा करना आत्मघाती कदम साबित होगा. यानी सर्वाधिक विधायकों वाला दल या गठबंधन होकर भी कोई सरकार नहीं बना सकता. नीतीश कुमार के राजनीति में उत्थान के समय 2005 से अब तक की अवधि में 2020 ही नीतीश का सबसे बुरा साल रहा, जब जेडीयू के सिर्फ 43 उम्मीदवार ही विधायक बन पाए.
नीतीश कुमार NDA छोड़ पाएंगे?
भले लोग नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के कयास लग रहे हैं और इसके लिए काउंट डाउन शुरू होने के अनुमान लगाए जा रहे हों, लेकिन नीतीश कुमार का पाला बदलना आसान नहीं दिखता. इसे कुछ संकेतों से समझिए. जेडीयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा ने अमित शाह के अंबेडकर पर दिए बयान का समर्थन किया है. वक्फ संशोधन बिल से लेकर संविधान पर बहस तक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और संप्रति केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह भाजपा के साथ खड़े रहे हैं. इतना ही नहीं, मुसलमानों को लेकर जेडीयू के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर और ललन सिंह की भाजपा जैसी ही भाषा सुनने को मिली है. ये लोग तो मुखरता के साथ भाजपा की भाषा बोल रहे हैं, कुछ सांसद-विधायक तो भाजपा के मूक समर्थक भी होंगे. एनडीए से अलग होने के पहले नीतीश इस खतरे को यकीनन भांप रहे होंगे.