नई दिल्ली,20 दिसंबर। पाकिस्तान में हाल ही में एक दिलचस्प और महत्वपूर्ण मुलाकात देखने को मिली जब नोबेल पुरस्कार विजेता और बांग्लादेश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मुलाकात की। यह मुलाकात न केवल ऐतिहासिक थी, बल्कि इसमें कई ऐसे मुद्दों पर चर्चा हुई जो दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
1971 की घटनाओं को भुलाने की अपील
प्रोफेसर यूनुस ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश की स्वतंत्रता के दौरान हुई घटनाओं पर चर्चा की। उन्होंने सुझाव दिया कि दोनों देशों को अतीत की शिकायतों और कटुता को पीछे छोड़कर भविष्य की ओर देखना चाहिए। उन्होंने कहा, “इतिहास से सीखना चाहिए, लेकिन उसे मन में बिठाकर आगे बढ़ना संभव नहीं है। अब समय है कि हम मिलकर काम करें और दक्षिण एशिया को एक उज्जवल भविष्य की ओर ले जाएं।”
SAARC को पुनर्जीवित करने की वकालत
प्रोफेसर यूनुस ने SAARC की गिरती हुई प्रासंगिकता पर भी चिंता जताई। उन्होंने इसे दक्षिण एशिया के विकास और समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बताया। उनका कहना था कि “अगर SAARC देशों के नेता एक साथ आकर साझा समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, और जलवायु परिवर्तन पर काम करें, तो यह क्षेत्र विश्व के लिए एक मॉडल बन सकता है।”
उन्होंने पाकिस्तान और भारत से खासतौर पर आग्रह किया कि वे अपने मतभेदों को दूर करें और संगठन को पुनर्जीवित करने के लिए नेतृत्व प्रदान करें।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने प्रोफेसर यूनुस की बातों को सकारात्मकता के साथ सुना और उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी सरकार क्षेत्रीय शांति और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। उन्होंने कहा, “हम अतीत की घटनाओं से ऊपर उठकर क्षेत्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं। SAARC के पुनर्जीवन के लिए पाकिस्तान हमेशा सकारात्मक भूमिका निभाने को तैयार है।”
क्या होगा आगे?
प्रोफेसर यूनुस की यह पहल दोनों देशों के बीच एक नई शुरुआत का संकेत हो सकती है। हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रहे विवादों और राजनीतिक असहमति को देखते हुए इसे अमलीजामा पहनाना आसान नहीं होगा।
निष्कर्ष
1971 की घटनाओं को भुलाना और क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देना न केवल बांग्लादेश, पाकिस्तान, और भारत, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। प्रोफेसर यूनुस की इस पहल ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि शांति और सहयोग की दिशा में छोटे कदम भी बड़े बदलाव ला सकते हैं। अब देखना यह होगा कि SAARC और क्षेत्रीय सहयोग को लेकर यह पहल कितनी सफल होती है।