नई दिल्ली,19 दिसंबर। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान की ऐतिहासिक हार और बांग्लादेश की आजादी की तस्वीर दुनिया के सामने एक ताकतवर प्रतीक के रूप में उभरी। इस ऐतिहासिक पल को दिखाने वाली आइकॉनिक तस्वीर, जिसमें पाकिस्तान के जनरल एए खान नियाज़ी ने भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने सरेंडर किया था, अब एक विवाद का केंद्र बन गई है। बांग्लादेश में यह सवाल उठाया जा रहा है कि इस ऐतिहासिक फोटो में बांग्लादेश के जनरल ओएसएम (ऑस्मान) क्यों नहीं दिखते। यह आरोप लगाया जा रहा है कि उनके योगदान को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया।
बांग्लादेश के पूर्व प्रधानमंत्री और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की सरकार से जुड़े कुछ समर्थकों का आरोप है कि बांग्लादेश के जनरल ओएसएम को पाकिस्तान के सरेंडर की तस्वीर से हटा दिया गया। उनका कहना है कि ऐसा करके बांग्लादेश के योगदान को कमतर दिखाने की कोशिश की गई है।
हालांकि, यह दावा ऐतिहासिक तथ्यों और दस्तावेजों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
16 दिसंबर 1971 को ढाका के रेसकोर्स मैदान में भारतीय सेना और पाकिस्तान सेना के बीच ऐतिहासिक सरेंडर हुआ।
- पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया।
- यह दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था।
- इस सरेंडर की तस्वीर में भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और पाकिस्तान के जनरल एए खान नियाज़ी मुख्य रूप से दिखाई देते हैं।
बांग्लादेशी जनरल का स्थान
- बांग्लादेश के मुक्ति वाहिनी के कई प्रमुख अधिकारी इस ऐतिहासिक पल का हिस्सा थे।
- लेकिन सरेंडर के दौरान तस्वीर में सिर्फ भारतीय और पाकिस्तानी सैन्य कमांडरों की उपस्थिति को प्राथमिकता दी गई, क्योंकि यह सैन्य आत्मसमर्पण के तौर पर दर्ज किया गया।
यूनुस समर्थकों के आरोप और सच्चाई
मोहम्मद यूनुस के समर्थकों का आरोप है कि यह बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम के योगदान को कमतर दिखाने की साजिश है।
- लेकिन इतिहासकारों का कहना है कि यह आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है।
- 1971 के युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व और कूटनीतिक प्रयास प्रमुख भूमिका में थे। बांग्लादेशी सेनाओं का योगदान महत्वपूर्ण था, लेकिन इस तस्वीर का उद्देश्य सैन्य सरेंडर को दर्शाना था।
फोटो से बांग्लादेश की भूमिका कम नहीं होती
तस्वीर से यह मान लेना कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम का महत्व कम हो गया, गलत है।
- बांग्लादेश की आजादी के लिए मुक्ति वाहिनी और बांग्लादेशी जनता ने अभूतपूर्व संघर्ष किया।
- भारत ने इस संघर्ष में सहयोग किया और 1971 की जीत दोनों देशों की साझा उपलब्धि है।
आरोपों के पीछे राजनीतिक मकसद?
ऐतिहासिक तथ्यों के बावजूद, इस तरह के आरोप राजनीतिक लाभ उठाने के लिए लगाए जा सकते हैं।
- बांग्लादेश की मौजूदा राजनीति में मोहम्मद यूनुस की भूमिका विवादित रही है।
- उनके समर्थक इन मुद्दों को उठाकर जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर सकते हैं।
निष्कर्ष
पाकिस्तान के सरेंडर की आइकॉनिक तस्वीर में बांग्लादेशी जनरल की अनुपस्थिति पर विवाद बेबुनियाद है।
- तस्वीर का उद्देश्य सरेंडर के सैन्य पक्ष को दर्शाना था, न कि किसी देश या व्यक्ति के योगदान को कम आंकना।
- बांग्लादेश की आजादी का संघर्ष और भारत का सहयोग इतिहास के पन्नों में हमेशा गर्व के साथ दर्ज रहेगा।
इस तरह के विवादों के बजाय, इन ऐतिहासिक पलों को साझा विरासत के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है।