सरकारें बदलीं, लेकिन कर्ज का बोझ बढ़ता गया: हिमाचल भवन की नीलामी की कहानी

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नई दिल्ली,20 नवम्बर। हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, आज भारी आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश सरकार के ‘हिमाचल भवन’ को लेकर जो खबरें सामने आई हैं, वे न केवल चिंता बढ़ाने वाली हैं, बल्कि यह सवाल भी उठाती हैं कि राज्य की वित्तीय स्थिति इस हद तक कैसे पहुंच गई।

हिमाचल भवन की नीलामी का मामला
दिल्ली के हिमाचल भवन की नीलामी का आदेश हिमाचल प्रदेश के बढ़ते कर्ज और सरकार की वित्तीय अस्थिरता का परिणाम है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के कर्ज अदायगी में चूक के चलते संपत्ति को अटैच कर नीलाम करने के आदेश दिए। यह फैसला हिमाचल प्रदेश की पिछली और वर्तमान सरकारों की वित्तीय प्रबंधन में विफलता को उजागर करता है।

कर्ज का बढ़ता बोझ
हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति पिछले कुछ वर्षों में लगातार बिगड़ी है। राज्य पर वर्तमान में लगभग 92,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। यह आंकड़ा छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल की कमजोर वित्तीय स्थिति का परिचायक है।

पूर्ववर्ती सरकारों का योगदान: चाहे जय राम ठाकुर की पिछली बीजेपी सरकार हो या वर्तमान में सुक्खू की कांग्रेस सरकार, दोनों ही वित्तीय स्थिरता लाने में असफल रहीं।
राजस्व का घाटा: हिमाचल की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पर्यटन और बागवानी पर निर्भर है। कोविड-19 के दौरान पर्यटन उद्योग को बड़ा झटका लगा, जिसने राज्य के राजस्व को और कमजोर कर दिया।
हिमाचल भवन की नीलामी का क्या मतलब?
हिमाचल भवन का नीलामी आदेश न केवल राज्य की असफल वित्तीय नीतियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे सरकारें अपनी संपत्तियों को भी बचाने में विफल रही हैं। यह एक ऐसा कदम है जो न केवल आर्थिक स्थिति का संकेत देता है, बल्कि राज्य की प्रतिष्ठा पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

जिम्मेदारी किसकी?
यह मामला केवल वर्तमान सरकार का नहीं है, बल्कि यह एक लंबी श्रृंखला का परिणाम है।

अर्थव्यवस्था की उपेक्षा: पूर्ववर्ती सरकारों ने राजस्व बढ़ाने और खर्च कम करने की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए।
बजट का असंतुलन: बेतरतीब कर्ज और गैर-जरूरी योजनाओं पर खर्च ने हिमाचल को इस स्थिति में पहुंचा दिया है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप: वर्तमान में मुख्यमंत्री सुक्खू ने इस स्थिति के लिए पूर्ववर्ती जय राम सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं, बीजेपी इसे कांग्रेस सरकार की लापरवाही कह रही है।
आगे का रास्ता
हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है।

आर्थिक सुधार: पर्यटन, बागवानी और हाइड्रोपावर जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
कर्ज प्रबंधन: सरकार को कर्ज चुकाने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी और गैर-जरूरी खर्चों पर रोक लगानी होगी।
संवेदनशीलता: सरकारों को अपनी संपत्तियों की रक्षा और उन्हें सुदृढ़ करने के प्रयास करने चाहिए।
निष्कर्ष
हिमाचल भवन की नीलामी का मामला केवल आर्थिक संकट की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे देश में वित्तीय प्रबंधन की गहरी समस्याओं का प्रतीक है। यह समय है कि राज्य सरकारें राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर ठोस नीतियां बनाएं, ताकि राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारी जा सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।

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