नई दिल्ली,6 नवम्बर। बिहार की मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा के निधन से संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। बुधवार को दोपहर 12 बजे के बाद उनका पार्थिव शरीर पटना में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा, ताकि उनके परिवार, मित्र और इंडस्ट्री के लोग उन्हें आखिरी विदाई दे सकें। बिहार की लोकसंस्कृति को अपने संगीत के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाली शारदा सिन्हा का निधन कला और संगीत प्रेमियों के लिए एक बड़ी क्षति है।
बिहार की लोकगायिकी को नया आयाम देने वाली शख्सियत
शारदा सिन्हा का नाम बिहार और उत्तर भारत की लोकगायिकी में विशेष स्थान रखता है। अपने संगीतमय सफर में उन्होंने ‘छठ गीतों’ और ‘सोहर’ जैसे पारंपरिक गीतों को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उनकी आवाज में रचा गया ‘पहिलका दरस पिया’ और ‘केलवा के पात पर उगेलन सूरज’ जैसे छठ गीत हर वर्ष छठ पर्व पर गूंजते हैं, जो आज भी श्रोताओं के दिलों में बसते हैं। उनके द्वारा गाए गए पारंपरिक गीतों ने न केवल भारतीय श्रोताओं बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों को भी अपनी माटी से जोड़े रखा।
अंतिम दर्शन के लिए उमड़ेगी भीड़
बुधवार को पटना में उनके पार्थिव शरीर को आम जनता के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा, और उम्मीद की जा रही है कि बड़ी संख्या में लोग वहां पहुंचेंगे। परिवार के सदस्य, करीबी मित्र और संगीत की दुनिया से जुड़े लोग उनकी इस विदाई में शामिल होंगे। पटना के सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े कई प्रमुख हस्तियां भी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंच सकती हैं।
एक अपूरणीय क्षति
शारदा सिन्हा के निधन से बिहार की संस्कृति को एक बड़ी क्षति पहुंची है। उन्होंने न केवल लोकसंगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि बिहार के गौरव और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवंत बनाए रखा। शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में जो संगीत का खजाना हमें सौंपा, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत रहेगा। उनकी आवाज़ में वो मिठास थी जो हमें अपनी संस्कृति और जड़ों से जोड़ती रही।
उनके इस अंतिम सफर में शामिल होकर लोग उनके योगदान को याद करेंगे और उनके द्वारा सृजित संगीत को अपनी स्मृतियों में संजोए रखेंगे। शारदा सिन्हा के जाने से लोकगायिकी का एक अध्याय समाप्त हुआ है, लेकिन उनकी विरासत हमेशा हमारे साथ रहेगी।