नई दिल्ली,6 नवम्बर। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि “ईस्ट इंडिया कंपनी तो खत्म हो गई, लेकिन उसकी जगह अब देश में एकाधिकारवादियों ने ले ली है।” राहुल गांधी के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उनका आरोप है कि वर्तमान सरकार देश के संसाधनों और व्यापारिक हितों को कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के हाथों में सौंप रही है, जिससे आम जनता पर बोझ बढ़ रहा है और गरीबी और असमानता बढ़ रही है।
एकाधिकारवाद पर राहुल गांधी का हमला
राहुल गांधी का कहना है कि देश में एक बार फिर वही स्थिति बन रही है जो कभी ब्रिटिश राज में थी, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आर्थिक हितों के लिए भारत के संसाधनों का शोषण किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि आज कुछ बड़े उद्योगपतियों और कॉरपोरेट्स के हितों को सरकार द्वारा प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे बाजार में छोटे और मझोले कारोबारियों के लिए कठिनाइयां बढ़ गई हैं। राहुल गांधी ने इसे “नया एकाधिकारवाद” करार दिया और कहा कि इस प्रवृत्ति से देश का लोकतंत्र खतरे में है।
चुनिंदा उद्योगपतियों के पक्ष में नीतियों का आरोप
राहुल गांधी का मानना है कि सरकार की कई नीतियां कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई जा रही हैं। उनका कहना है कि सरकारी क्षेत्रों का निजीकरण और बड़ी कंपनियों को बढ़ावा देने जैसी नीतियां आम जनता के हितों को प्रभावित कर रही हैं। वे बार-बार कहते रहे हैं कि स्वास्थ्य, शिक्षा, और कृषि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी निजी हाथों में सौंपा जा रहा है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की मुश्किलें बढ़ रही हैं।
कृषि कानूनों और निजीकरण का विरोध
राहुल गांधी ने हाल ही में पारित हुए कृषि कानूनों पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि ये कानून बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलने में मुश्किलें आएंगी। इसके अलावा, बैंकिंग, रेलवे, और रक्षा जैसे क्षेत्रों में निजीकरण की ओर बढ़ते कदमों को भी उन्होंने आम जनता के खिलाफ बताया है। उनके अनुसार, ये नीतियां देश के संसाधनों को कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित कर रही हैं, जो देश की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
‘नया ईस्ट इंडिया मॉडल’ का खतरा
राहुल गांधी ने कहा कि जिस प्रकार से कुछ उद्योगपतियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है, वह देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। उनके मुताबिक, “नया ईस्ट इंडिया मॉडल” धीरे-धीरे देश के हर क्षेत्र में फैलता जा रहा है। इससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर असर पड़ सकता है, क्योंकि जब सारी शक्ति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाती है, तो जनता की आवाज कमजोर पड़ने लगती है। उनका कहना है कि हमें इस नए एकाधिकारवाद का मुकाबला करना होगा और एक समावेशी एवं लोकतांत्रिक समाज की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
सरकार की नीतियों पर बढ़ती आलोचना
राहुल गांधी के इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। यह माना जा रहा है कि राहुल गांधी का यह बयान सरकार की आर्थिक और सामाजिक नीतियों के खिलाफ एक बड़े अभियान की शुरुआत हो सकता है। विपक्षी नेताओं का मानना है कि आम लोगों के हितों की रक्षा के लिए इस मुद्दे पर एकजुट होना जरूरी है।
निष्कर्ष
राहुल गांधी के इस बयान से यह साफ है कि आने वाले समय में विपक्ष एकाधिकारवाद और निजीकरण के मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश करेगा। उनकी यह टिप्पणी देश में बढ़ती आर्थिक असमानता और छोटे व्यवसायों के लिए मुश्किल हालात पर एक गंभीर चिंता व्यक्त करती है। भारत की आर्थिक नीतियों का संतुलन कैसे बनता है और क्या सरकार इस आलोचना का जवाब देने के लिए अपने कदमों में बदलाव करती है, यह देखने वाली बात होगी।