लखनऊ,5 नवम्बर। उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक (DGP) की तैनाती के नियमों में बदलाव कर दिए गए हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर एक नई नियमावली तैयार की है, जिसे हाल ही में योगी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इस नियमावली के तहत अब डीजीपी का चयन यूपी राज्य में ही किया जाएगा, और इसके लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। इस फैसले का मुख्य उद्देश्य डीजीपी की नियुक्ति प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी, तेज, और राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार बनाना है।
क्या है नए नियमों के तहत डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया?
स्वतंत्र चयन प्रक्रिया
नए नियमों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में डीजीपी की तैनाती के लिए अब राज्य को UPSC की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। पहले राज्य सरकार को UPSC की मंजूरी लेनी पड़ती थी, लेकिन अब इस नई नियमावली के अंतर्गत राज्य सरकार स्वतंत्र रूप से डीजीपी के नाम का चयन कर सकेगी।
राज्य में ही होगा चयन
राज्य में डीजीपी के नाम का चयन यूपी सरकार द्वारा ही किया जाएगा। अब यूपी में डीजीपी के पद के लिए राज्य सरकार स्वयं एक समिति का गठन करेगी, जो योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करेगी। इस समिति में मुख्य सचिव और गृह विभाग के उच्च अधिकारी शामिल होंगे।
योग्य अफसरों की शॉर्टलिस्टिंग
डीजीपी के चयन के लिए नई नियमावली के अनुसार, वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारियों में से योग्य अफसरों की शॉर्टलिस्टिंग की जाएगी। समिति में अफसरों के अनुभव, रिकॉर्ड, और अन्य मानकों के आधार पर योग्य अधिकारियों की सूची तैयार की जाएगी। इसके बाद मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च-स्तरीय समिति अंतिम निर्णय लेगी।
डीजीपी का कार्यकाल
नियमावली में डीजीपी के कार्यकाल को लेकर भी दिशा-निर्देश दिए गए हैं। नए नियमों के मुताबिक, नियुक्त डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष का होगा, जिससे प्रशासनिक स्थिरता बनी रहेगी। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार है, जो राज्यों में पुलिस प्रमुखों के न्यूनतम कार्यकाल को सुनिश्चित करने के लिए जारी किए गए थे।
नए नियमों के क्या फायदे हैं?
तेजी और प्रभावी प्रक्रिया
UPSC की मंजूरी की प्रक्रिया में समय लगता था, जिससे डीजीपी की नियुक्ति में देरी होती थी। नए नियमों से यूपी सरकार स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकेगी, जिससे नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी आएगी और खाली पद पर त्वरित तैनाती संभव होगी।
राज्य की जरूरतों के अनुसार नियुक्ति
डीजीपी के पद के लिए राज्य सरकार अपने जरूरतों के हिसाब से अनुभवी और उपयुक्त अधिकारी का चयन कर सकेगी। यूपी की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा डीजीपी नियुक्त करने में सुविधा होगी, जो राज्य की चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सके।
स्थिरता और निरंतरता
नए नियमों के तहत डीजीपी का न्यूनतम कार्यकाल दो वर्ष तय किया गया है, जिससे डीजीपी को अपनी योजनाओं और नीतियों को लागू करने का पर्याप्त समय मिलेगा। इससे पुलिस विभाग में स्थिरता आएगी और अधिकारियों को प्रशासनिक निरंतरता प्राप्त होगी।
यूपी में डीजीपी नियुक्ति का यह बदलाव क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखना हमेशा एक चुनौती रही है। ऐसे में डीजीपी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वह राज्य की पुलिस व्यवस्था का नेतृत्व करता है। डीजीपी का पद केवल एक प्रशासनिक भूमिका नहीं है, बल्कि इसका सीधा प्रभाव राज्य की कानून-व्यवस्था, अपराध नियंत्रण, और समाज में सुरक्षा के माहौल पर पड़ता है।
डीजीपी का स्वतंत्र चयन यूपी सरकार को वह क्षमता देगा कि वह उन अधिकारियों को चुन सके, जो राज्य की कानून व्यवस्था को बेहतर तरीके से संभालने के लिए तैयार हैं। इसके अलावा, राजनीतिक दखलअंदाजी की संभावना भी कम हो जाएगी, क्योंकि नई नियमावली के तहत चयन प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है।
निष्कर्ष
योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा डीजीपी की तैनाती के लिए नई नियमावली की मंजूरी से यह स्पष्ट है कि सरकार पुलिस प्रशासन को और अधिक सशक्त और कुशल बनाना चाहती है। यूपी में डीजीपी के चयन की प्रक्रिया अब सरल और तेज हो जाएगी, जिससे राज्य की कानून-व्यवस्था और अपराध नियंत्रण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे उत्तर प्रदेश में पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार आने की उम्मीद है, और यह नया कदम राज्य को एक स्थिर और सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में मददगार साबित हो सकता है।