नई दिल्ली,5 नवम्बर। कनाडा में सिखों की उपस्थिति का इतिहास 127 साल पुराना है, जब 1897 में सबसे पहले केसूर सिंह नामक एक सिख कनाडा पहुँचे थे। केसूर सिंह ब्रिटिश भारतीय सेना के सिख रेजिमेंट के सैनिक थे, जो कनाडा के पश्चिमी तट पर पहुंचे। इसके बाद धीरे-धीरे भारतीय सिखों का कनाडा में प्रवास बढ़ता गया, और 20वीं सदी के मध्य तक कनाडा में सिख समुदाय की एक महत्वपूर्ण आबादी बस चुकी थी। सिख समुदाय की कड़ी मेहनत और सांस्कृतिक पहचान के कारण वे कनाडा के समाज में समर्पित रूप से घुलमिल गए। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, खालिस्तान समर्थक गतिविधियों की वजह से यह समुदाय अंतरराष्ट्रीय विवादों का केंद्र बन गया है।
कैसे हुई कनाडा में सिखों की बसावट?
1897 में केसूर सिंह के आने के बाद, 1900 के दशक की शुरुआत में पंजाब से अन्य सिख भी रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में कनाडा पहुँचना शुरू हुए। शुरुआत में ब्रिटिश कोलंबिया में बसे इन प्रवासियों ने वहां की जंगल और रेलवे निर्माण कार्यों में कड़ी मेहनत से काम किया। शुरुआती समय में सिख समुदाय को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी मेहनत और सामुदायिक भावना के कारण उन्होंने कनाडा में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाई।
खालिस्तानी विचारधारा का उदय और विस्तार
1980 के दशक में पंजाब में खालिस्तान समर्थक आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने भारतीय पंजाब के सिखों के बीच एक अलगाववादी विचारधारा को जन्म दिया। खालिस्तान आंदोलन का लक्ष्य एक स्वतंत्र सिख राष्ट्र की स्थापना करना था। भारत सरकार और खालिस्तान समर्थकों के बीच तनाव और टकराव ने कई हिंसक घटनाओं को जन्म दिया। इस समय तक, कनाडा में भी कुछ लोगों ने इस विचारधारा का समर्थन करना शुरू कर दिया था, और वहां के कुछ सिख समुदायों में खालिस्तान समर्थक तत्वों ने अपने प्रभाव का विस्तार करना शुरू कर दिया।
कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा के समर्थक धीरे-धीरे नेटवर्क बनाने लगे, जो वहां के गुरुद्वारों, धार्मिक संस्थानों और सामुदायिक संगठनों के माध्यम से अपनी गतिविधियों को संचालित करने लगे। इसके माध्यम से उन्होंने वहां के युवा सिखों को खालिस्तानी विचारधारा की ओर प्रेरित किया।
कनाडा में खालिस्तान समर्थकों का नेटवर्क कैसे फैलता गया?
धार्मिक संस्थानों का उपयोग:
कनाडा में कई गुरुद्वारे हैं, जहाँ सिख समुदाय की धार्मिक और सामाजिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं। कुछ खालिस्तान समर्थक समूहों ने गुरुद्वारों को अपने विचारधारा के प्रचार का माध्यम बना लिया। खालिस्तान समर्थकों ने धार्मिक स्थानों का उपयोग कर सिख समुदाय को प्रभावित करना शुरू किया, खासकर युवाओं को।
सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम:
कनाडा में खालिस्तान समर्थक समूहों ने विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिनमें खालिस्तानी नेताओं की विचारधारा को प्रस्तुत किया गया। ये कार्यक्रम युवाओं को प्रेरित करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए थे, ताकि खालिस्तान के समर्थन में एक पीढ़ी तैयार की जा सके।
धन और राजनीतिक समर्थन:
कनाडा में खालिस्तानी समर्थक समूहों को विभिन्न स्रोतों से वित्तीय समर्थन प्राप्त हुआ। इसके अलावा, कनाडा में कुछ राजनेताओं ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया, जिससे यह मुद्दा और अधिक सशक्त होता गया। वित्तीय समर्थन के माध्यम से इन समूहों ने अपनी गतिविधियों का विस्तार किया और प्रचार सामग्री को प्रसारित किया।
सोशल मीडिया का प्रभाव:
पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया का उपयोग भी खालिस्तानी आंदोलन के प्रसार में महत्वपूर्ण रहा है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर खालिस्तान समर्थकों ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए सामग्री तैयार की। इसके माध्यम से उन्होंने अपनी विचारधारा को कनाडा और दुनिया भर में फैलाया।
वर्तमान स्थिति और विवाद
हाल ही में, कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों में वृद्धि को लेकर भारत और कनाडा के संबंधों में तनाव बढ़ा है। कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों ने भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए और भारत सरकार के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं। भारत सरकार ने कनाडा सरकार से इन गतिविधियों पर रोक लगाने की अपील की, लेकिन कनाडा की ओर से इस पर उचित कार्रवाई नहीं की गई, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा हो गया।
का रुख ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अंतर्गत वहाँ के नागरिकों को अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता है। लेकिन भारत सरकार का मानना है कि यह सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ हैं, जिन्हें कनाडा में समर्थन मिल रहा है।
निष्कर्ष
कनाडा में सिख समुदाय की 127 साल पुरानी उपस्थिति, जो कड़ी मेहनत और संस्कृति को संरक्षित करने का प्रतीक रही है, अब खालिस्तान समर्थक गतिविधियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय विवादों का हिस्सा बन गई है। खालिस्तानी नेटवर्क का फैलाव कनाडा में सिख समुदाय की छवि को प्रभावित कर रहा है, जिससे भारत और कनाडा के संबंधों में तनाव बढ़ता जा रहा है। खालिस्तान मुद्दे का हल तभी निकल सकता है जब दोनों देश मिलकर इन राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर ठोस कदम उठाएँ और सिख समुदाय की असली पहचान को संरक्षित रखने का प्रयास करें।