भारत-चीन सीमा समझौता: चीन को आसानी से नहीं मनाया गया, कूटनीतिक घेराबंदी से बनी बात

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नई दिल्ली,22 अक्टूबर। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन 2020 में गलवान घाटी में हुए टकराव के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर स्थिति को सामान्य बनाने के लिए लगातार कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर बातचीत हो रही थी। हालांकि, चीन ने सीमा समझौते को लेकर लंबे समय तक सख्त रुख अपनाया और आसानी से किसी भी प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं था। भारत ने इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में न केवल मजबूती से खड़े होकर अपने हितों की रक्षा की, बल्कि चीन की घेराबंदी कर उसे समझौते के लिए तैयार किया।

चीन का टकरावपूर्ण रुख
चीन की ओर से LAC पर आक्रामकता और अतिक्रमण की कोशिशें पिछले कुछ वर्षों में भारत के लिए चिंता का विषय बनी रही हैं। चीन ने अक्सर अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन करते हुए भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की घटनाओं को अंजाम दिया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा। इसके अलावा, चीन ने कूटनीतिक स्तर पर भी सीमा विवाद को सुलझाने में कोई जल्दी नहीं दिखाई, और वह अपने पक्ष में समय निकालने की कोशिश करता रहा। चीन का उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी स्थिति को मजबूत करना और भारत पर दबाव बनाए रखना था।

भारत की कूटनीतिक घेराबंदी
भारत ने इस चुनौती का सामना करने के लिए एक सुदृढ़ कूटनीतिक नीति अपनाई। एक ओर जहां भारतीय सेना ने सीमा पर अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखा, वहीं दूसरी ओर भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन के आक्रामक रवैये को उजागर किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने चीन पर आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाने की कोशिश की।

भारत ने चीन के साथ संबंधों को लेकर संतुलन बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन उसने साफ कर दिया कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता से समझौता नहीं करेगा। इसके अलावा, भारत ने अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ क्वाड (Quad) जैसी रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत किया, जिससे चीन पर दबाव और बढ़ा। इस घेराबंदी से चीन को अहसास हुआ कि उसे सीमा विवाद सुलझाने की दिशा में कुछ कदम उठाने होंगे।

सीमा समझौता और बातचीत का नतीजा
लंबे समय तक चली सैन्य और कूटनीतिक बातचीत के बाद आखिरकार चीन ने सीमा समझौते के लिए तैयार होने के संकेत दिए। यह समझौता LAC पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। समझौते के तहत, दोनों पक्षों ने संवेदनशील क्षेत्रों से सैनिकों को हटाने और टकराव को टालने के उपायों पर सहमति जताई है।

हालांकि, यह समझौता भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि चीन ने यह फैसला किसी दबाव में लिया है। भारत की घेराबंदी ने चीन को यह समझने पर मजबूर किया कि सीमा विवाद को लंबा खींचने से उसे ही नुकसान होगा।

आगे की चुनौतियाँ
यह समझौता एक सकारात्मक कदम जरूर है, लेकिन यह मान लेना गलत होगा कि इससे भारत-चीन संबंध पूरी तरह से सामान्य हो गए हैं। चीन के इतिहास को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि वह भविष्य में फिर से सीमा पर आक्रामकता नहीं दिखाएगा। इसलिए, भारत को सतर्क रहकर अपनी सीमा सुरक्षा को मजबूत बनाए रखना होगा और चीन की हर चाल पर नजर रखनी होगी।

इसके अलावा, भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कूटनीतिक गतिविधियों को जारी रखना होगा, ताकि चीन पर हमेशा दबाव बना रहे और वह कोई अनुचित कदम न उठा सके।

निष्कर्ष
भारत और चीन के बीच सीमा समझौता एक लंबी और जटिल प्रक्रिया का परिणाम है, जिसमें भारत ने कूटनीतिक घेराबंदी के माध्यम से चीन को बातचीत की मेज पर लाया। हालांकि यह समझौता दोनों देशों के बीच स्थिरता और शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन भारत को अपनी सतर्कता बनाए रखनी होगी। चीन के आक्रामक रुख को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि भारत अपनी सुरक्षा और कूटनीतिक ताकत को मजबूत बनाए रखे, ताकि भविष्य में किसी भी चुनौती का सामना किया जा सके।

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