मोदी-पुतिन-जिनपिंग की मौजूदगी में BRICS करेंसी पर चर्चा: क्या बनेगी बात? डॉलर की बादशाहत पर क्या होगा असर?

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नई दिल्ली,22 अक्टूबर। BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका) समूह के सदस्य देशों के बीच हाल ही में ब्रिक्स करेंसी का विचार तेजी से चर्चा का विषय बन रहा है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी डॉलर की बादशाहत को चुनौती देना है। BRICS समूह के सदस्य देश, जिनकी संयुक्त आर्थिक ताकत और वैश्विक प्रभाव काफी बढ़ता जा रहा है, एक साझा करेंसी के विचार पर गहराई से विचार कर रहे हैं। हालिया शिखर सम्मेलनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मौजूदगी में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई।

BRICS करेंसी का विचार
BRICS करेंसी का विचार एक वैकल्पिक मुद्रा को पेश करना है, जिसे इन देशों के बीच व्यापार और आर्थिक लेनदेन में अमेरिकी डॉलर के बजाय इस्तेमाल किया जा सके। डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता कम करने के लिए, इस करेंसी का लक्ष्य एक ऐसे वैश्विक वित्तीय तंत्र को तैयार करना है, जो पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रभाव को संतुलित कर सके। अगर यह योजना सफल होती है, तो यह अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है, खासकर वैश्विक व्यापार और निवेश के मामलों में।

चर्चा के प्रमुख बिंदु
प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति पुतिन, और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में हुई चर्चा में BRICS करेंसी के विचार को लेकर कुछ प्रमुख बिंदुओं पर फोकस किया गया:

आर्थिक स्वतंत्रता: इन देशों का मानना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिकी डॉलर की अत्यधिक पकड़ से उन्हें वित्तीय अस्थिरता और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। खासकर रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद, रूस की मुद्रा और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा है।
वैश्विक व्यापार में विविधता: BRICS करेंसी वैश्विक व्यापार को डॉलर के एकाधिकार से बाहर निकालने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। यह करेंसी समूह के सदस्य देशों के बीच व्यापारिक लेनदेन को आसान बना सकती है।
संप्रभुता और सशक्तिकरण: करेंसी का निर्माण इन देशों को वैश्विक वित्तीय तंत्र में अपनी संप्रभुता बनाए रखने और अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने में मदद करेगा।
अमेरिकी डॉलर पर संभावित असर
अगर BRICS करेंसी की योजना अमल में आती है, तो इसका अमेरिकी डॉलर पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। डॉलर की वैश्विक व्यापार और निवेश में प्रमुखता इस करेंसी के आने से कम हो सकती है। वर्तमान में, अधिकांश अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है, लेकिन अगर BRICS देश अपनी व्यापारिक गतिविधियों में एक नई मुद्रा को अपनाते हैं, तो यह डॉलर की मांग को कम कर सकता है। इसके अलावा, अन्य देशों को भी इस नई व्यवस्था में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, खासकर वे देश जो पश्चिमी आर्थिक नीतियों से असंतुष्ट हैं।

चुनौतीपूर्ण रास्ते
हालांकि, BRICS करेंसी का विचार महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसे लागू करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अलग-अलग आर्थिक संरचनाओं, मुद्राओं और विकासशील स्थितियों वाले देशों के बीच एक साझा करेंसी को सफलतापूर्वक लागू करना आसान नहीं होगा। इसके अलावा, राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक असहमति भी इस योजना के रास्ते में आ सकती है।

सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास: चीन और भारत के बीच सीमा विवाद और रूस की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, इन देशों के बीच आपसी विश्वास की कमी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
वित्तीय नीतियों का तालमेल: BRICS देशों की आर्थिक नीतियां काफी अलग हैं। इनमें संतुलन बिठाना और एक सामान्य मुद्रा व्यवस्था बनाना एक जटिल काम होगा।
निष्कर्ष
मोदी, पुतिन, और जिनपिंग जैसे बड़े नेताओं की मौजूदगी में BRICS करेंसी पर चर्चा एक महत्वपूर्ण कदम है। अगर यह योजना सफलतापूर्वक लागू होती है, तो यह अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती दे सकती है और एक नया वित्तीय ढांचा तैयार कर सकती है। हालाँकि, इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं, जिन्हें हल किए बिना इस पहल को सफल बनाना मुश्किल होगा। अगर BRICS समूह इस दिशा में आगे बढ़ता है, तो इसका वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, और दुनिया की आर्थिक संतुलन में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।

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