नई दिल्ली,22 अक्टूबर। भारत और चीन के बीच संबंधों में पिछले कुछ वर्षों में गहरा तनाव देखने को मिला है, खासकर 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद। इस घटना के बाद से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा ने कई मुद्दों को जन्म दिया। हालांकि, पिछले कुछ महीनों में दोनों पक्षों के बीच बातचीत के माध्यम से तनाव कम करने के प्रयास हुए हैं। अब, कज़ान (रूस) में होने वाले संभावित मोदी-जिनपिंग शिखर सम्मेलन पर सबकी नजरें हैं, जहां दोनों देशों के नेताओं की मुलाकात हो सकती है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस बैठक से दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव का अंत हो सकेगा?
गलवान घाटी से शुरू हुआ टकराव
2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प ने दोनों देशों के संबंधों में गहरा तनाव पैदा कर दिया था। इस घटना में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, और यह झड़प सीमा पर हाल के दशकों में सबसे गंभीर संघर्षों में से एक थी। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर घुसपैठ और सीमा उल्लंघन का आरोप लगाया, जिससे कई महीनों तक सैन्य गतिरोध बना रहा।
इसके बाद से भारत और चीन के बीच कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक बातचीत हुई है, लेकिन सीमा विवाद को लेकर कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। हालांकि, दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे तनाव को कम करने के लिए कुछ क्षेत्रों से सैनिकों को हटाने के कदम उठाए हैं।
कज़ान में संभावित मुलाकात
कज़ान में आगामी शिखर सम्मेलन पर सभी की निगाहें टिकी हैं, जहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित मुलाकात हो सकती है। इस मुलाकात को दोनों देशों के बीच चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों ने राजनयिक स्तर पर बातचीत को तेज किया है, और अब यह उम्मीद की जा रही है कि कज़ान में होने वाली यह बैठक सीमा विवाद को हल करने की दिशा में कुछ ठोस नतीजे ला सकती है। हालांकि, दोनों देशों के बीच अविश्वास और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के चलते यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बैठक से कोई बड़ा समझौता हो पाता है।
बातचीत के प्रयास और चुनौतियाँ
गलवान घाटी की घटना के बाद से अब तक कई दौर की बातचीत हुई है। दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत के साथ-साथ विदेश मंत्रियों के बीच भी कई बार वार्ता हुई है। बातचीत के बावजूद, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है, और दोनों पक्षों के सैनिक अभी भी कई संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात हैं।
चुनौतियों में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि चीन और भारत की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं अक्सर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी होती हैं। चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय है, और भारत का अमेरिका के साथ नजदीकी सहयोग भी चीन के साथ उसके संबंधों को जटिल बना देता है। इसके अलावा, दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा भी दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाती है।
संभावित समझौता और आगे का रास्ता
अगर कज़ान में मोदी और जिनपिंग के बीच मुलाकात होती है, तो यह दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। इस बैठक से सीमा विवाद पर एक बड़े समझौते की उम्मीद की जा सकती है, जो दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार का रास्ता खोल सकता है। हालांकि, यह समझौता तभी सफल होगा, जब दोनों पक्ष अपनी सैन्य और कूटनीतिक नीतियों में लचीलापन दिखाएंगे और एक-दूसरे के प्रति विश्वास बहाल करेंगे।
निष्कर्ष
भारत और चीन के बीच टकराव और बातचीत का यह चक्र अब कज़ान में संभावित मुलाकात के साथ एक नए मोड़ पर है। गलवान से शुरू हुआ तनाव का अंत कज़ान में हो सकता है, अगर दोनों देश इस अवसर का सही तरीके से उपयोग करें। हालांकि, इस बैठक के परिणाम क्या होंगे, यह अभी अनिश्चित है, लेकिन यह साफ है कि भारत और चीन के संबंधों के भविष्य पर कज़ान की यह मुलाकात गहरा प्रभाव डाल सकती है।