नई दिल्ली,9 अक्टूबर। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के हालिया चुनाव नतीजे इस बात की स्पष्ट मिसाल हैं कि केवल राजनीतिक लेगेसी (विरासत) जीत की गारंटी नहीं हो सकती। दोनों राज्यों के नतीजों ने यह संदेश दिया है कि सिर्फ पार्टी के बड़े नेताओं या सेनापतियों पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि चुनावी जंग जीतने के लिए जमीनी स्तर पर कड़ी मेहनत और रणनीति की भी उतनी ही जरूरत है।
लेगेसी से परे चुनावी संघर्ष
कांग्रेस जैसी पुरानी और विरासती पार्टी के लिए यह नतीजे एक महत्वपूर्ण सबक हैं। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का पुराना जनाधार और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी मजबूत सहयोगी पार्टी का साथ होने के बावजूद पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। यह साबित करता है कि सिर्फ पार्टी का नाम, उसकी पुरानी पहचान या सेनापतियों (बड़े नेताओं) का मैदान में उतरना ही जीत की गारंटी नहीं है।
हरियाणा में कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी और अन्य क्षेत्रीय दलों से था, जबकि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन के बावजूद पार्टी को जमीनी समर्थन नहीं मिला। इससे साफ होता है कि जनता अब ज्यादा जागरूक हो गई है और वह सिर्फ पारिवारिक राजनीतिक विरासत या पुराने नायकों के नाम पर वोट नहीं करती।
जमीनी स्तर पर मेहनत की अहमियत
चुनावी सफलता के लिए अब बड़े नेताओं के भाषणों और रैलियों से अधिक महत्व जमीनी स्तर पर काम करने वालों का है। कार्यकर्ता, स्थानीय नेता और क्षेत्रीय मुद्दों को समझने वाले नेताओं की भूमिका निर्णायक हो गई है। केवल राष्ट्रीय स्तर के नेताओं पर निर्भर रहकर चुनाव लड़ना अब कारगर साबित नहीं हो रहा है।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण जमीनी स्तर पर पार्टी की कमजोर उपस्थिति और स्थानीय मुद्दों से दूरी रही है। बीजेपी जैसी पार्टियों ने जहां गहरी पकड़ बनाई, वहीं कांग्रेस क्षेत्रीय जनसंवाद और स्थानीय जरूरतों को समझने में पिछड़ गई।
सेनापति नहीं, सैनिक जीतते हैं जंग
राजनीतिक विश्लेषक अब इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सेनापति (बड़े नेता) चुनावी लड़ाई की दिशा तो तय कर सकते हैं, लेकिन असली जीत सैनिकों (स्थानीय कार्यकर्ताओं और छोटे नेताओं) के हाथों से होती है। जमीनी स्तर के कार्यकर्ता ही पार्टी का चेहरा बनते हैं और मतदाताओं के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़ते हैं।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों से यह साफ हुआ है कि बड़े नेता और राष्ट्रीय मुद्दे जनता को आकर्षित करने में नाकाफी हो सकते हैं, अगर जमीनी स्तर पर पार्टी का संगठन मजबूत न हो।
भविष्य के लिए कांग्रेस को सीख
कांग्रेस के लिए यह समय आत्ममंथन का है। पार्टी को समझना होगा कि सिर्फ विरासत और बड़े नेताओं पर भरोसा करना पर्याप्त नहीं है। उसे जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना होगा, स्थानीय नेताओं को सशक्त बनाना होगा और क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान देना होगा।
चुनाव में सफल होने के लिए कांग्रेस को अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना होगा और उन्हें मजबूत रणनीति के साथ जनता के बीच भेजना होगा। सिर्फ भाषण और वादों से चुनावी जंग जीतना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा। जनता अब मुद्दों और काम की राजनीति चाहती है, और कांग्रेस को अपनी रणनीति उसी अनुसार बदलनी होगी।
निष्कर्ष
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के नतीजे इस बात का संकेत हैं कि केवल विरासत और सेनापति चुनावी जंग में सफलता की गारंटी नहीं दे सकते। जनता का भरोसा जीतने के लिए जमीन पर मेहनत, स्थानीय नेताओं का समर्थन और सशक्त संगठन का होना बेहद जरूरी है। राजनीतिक दलों के लिए यह समय है कि वे अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करें और केवल नाम या इतिहास पर निर्भर न रहें, बल्कि जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए चुनावी जंग लड़ें।