नई दिल्ली,1 अक्टूबर। रेप और हत्या के मामलों में सजायाफ्ता डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम एक बार फिर से हरियाणा में चुनाव के पहले पैरोल पर बाहर आने की तैयारी में है। यह कदम चुनाव के समय पर लिए जाने के कारण कई सवाल खड़े कर रहा है। चुनाव आयोग ने राम रहीम की पैरोल याचिका को शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया है, जिससे चुनावी माहौल में नया मोड़ आ गया है।
क्या है पूरा मामला?
गुरमीत राम रहीम, जो डेरा सच्चा सौदा प्रमुख है, 2017 से रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है। उसे रेप और हत्या के मामलों में दोषी ठहराया गया था। जेल में रहते हुए, राम रहीम कई बार पैरोल पर बाहर आ चुका है, और हर बार उसकी रिहाई चुनाव के आस-पास होने के कारण विवादों का विषय बनी है।
हरियाणा में जल्द ही नगर निकाय चुनाव होने वाले हैं, और इस समय राम रहीम की पैरोल को मंजूरी दिए जाने से विपक्ष और नागरिक समाज में नाराजगी पैदा हो रही है। कई लोग यह मानते हैं कि राम रहीम के बाहर आने से राजनीतिक दलों को उनके अनुयायियों के वोट हासिल करने में मदद मिल सकती है।
चुनाव आयोग की शर्तें
चुनाव आयोग ने राम रहीम की पैरोल याचिका को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी है। इन शर्तों के अनुसार, राम रहीम को किसी भी चुनावी गतिविधि में भाग नहीं लेने की अनुमति होगी। हालांकि, यह देखा गया है कि पिछली बार जब वह पैरोल पर बाहर आया था, तब उसने ऑनलाइन सत्संग किए और अपने अनुयायियों के साथ संवाद स्थापित किया था, जिससे चुनावी माहौल प्रभावित हो सकता है।
राम रहीम के अनुयायी, खासकर हरियाणा और पंजाब में बड़ी संख्या में हैं, और उनका धार्मिक प्रभाव इन राज्यों की राजनीति में भी देखा जाता है। ऐसे में उसकी रिहाई से चुनावी समीकरणों पर असर पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
विरोध और समर्थन
राम रहीम की पैरोल को लेकर विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह कदम राजनीतिक लाभ लेने के लिए उठाया जा रहा है, और इसका सीधा फायदा सत्तारूढ़ पार्टी को हो सकता है। वहीं, राम रहीम के समर्थक इसे एक धार्मिक नेता के साथ न्याय का हिस्सा मानते हैं और उसकी रिहाई का समर्थन कर रहे हैं।
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिला संगठनों ने भी राम रहीम की रिहाई का विरोध किया है। उनका कहना है कि एक सजायाफ्ता अपराधी को बार-बार पैरोल पर छोड़ना न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। उनका मानना है कि राम रहीम की रिहाई से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो सकता है।
राम रहीम का प्रभाव
गुरमीत राम रहीम के अनुयायी पूरे उत्तर भारत में फैले हुए हैं, और खासकर हरियाणा और पंजाब में उनकी बड़ी संख्या है। उनके डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों का राजनीतिक झुकाव भी समय-समय पर देखा गया है, और इसीलिए हर चुनाव से पहले राम रहीम की रिहाई पर विवाद होता है।
पिछले चुनावों में देखा गया है कि राम रहीम के अनुयायी अपने गुरु के निर्देशों का पालन करते हुए मतदान करते हैं, जिससे चुनावी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। यही कारण है कि हर बार चुनाव से पहले उसकी रिहाई पर सवाल उठते हैं।
निष्कर्ष
राम रहीम की पैरोल पर रिहाई एक बार फिर हरियाणा के चुनावी माहौल में विवाद का मुद्दा बन गई है। एक ओर जहां सत्तारूढ़ पार्टी और राम रहीम के अनुयायी इसे सामान्य प्रक्रिया मान रहे हैं, वहीं विपक्ष और समाज के कुछ वर्ग इसे चुनावी लाभ के लिए उठाया गया कदम बता रहे हैं।
इस मामले में चुनाव आयोग की शर्तें लागू हैं, लेकिन यह देखना होगा कि क्या राम रहीम की रिहाई से चुनावी परिणाम प्रभावित होते हैं या नहीं।