ढाका ,4 सितम्बर। ढाका में चीन के राजदूत याओ वेन ने हाल ही में जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के ऑफिस का दौरा किया और वहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की। इस अप्रत्याशित मुलाकात ने न केवल बांग्लादेश की राजनीति में हलचल मचाई है, बल्कि भारत की सुरक्षा और कूटनीतिक रणनीति को लेकर चिंताओं को भी जन्म दिया है।
जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में एक विवादास्पद राजनीतिक और धार्मिक संगठन के रूप में जाना जाता है, जिसकी विचारधारा और गतिविधियां हमेशा से चर्चा में रही हैं। ऐसे में चीनी राजदूत की इस संगठन के नेताओं से मुलाकात भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह संकेत दे सकता है कि चीन दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए नए कदम उठा रहा है।
भारत के लिए बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण पड़ोसी है, और दोनों देशों के बीच मजबूत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं। ऐसे में जमात-ए-इस्लामी के साथ चीन के संबंधों में निकटता भारत के लिए एक चुनौती बन सकती है। चीन का यह कदम बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में उसके प्रभाव को बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जो भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन द्वारा बांग्लादेश में विभिन्न राजनीतिक संगठनों के साथ संबंध स्थापित करने का उद्देश्य, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के प्रभाव को कमजोर करना हो सकता है। जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के साथ चीन की नजदीकी भारत के लिए कई संभावित खतरों की ओर इशारा करती है, खासकर जब यह संगठन भारत-विरोधी विचारधारा के लिए जाना जाता है।
भारत सरकार इस मुलाकात पर पैनी नजर बनाए हुए है और आने वाले समय में इस संबंध में अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है। चीन और जमात-ए-इस्लामी के बीच इस बढ़ती निकटता को लेकर भारत सतर्क है और बांग्लादेश की सरकार से इस मुद्दे पर बातचीत कर सकता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुलाकात के बाद बांग्लादेश की राजनीति और भारत-बांग्लादेश संबंधों में क्या बदलाव आते हैं। फिलहाल, इस घटना ने भारत के कूटनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है और आने वाले दिनों में यह एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बना रहेगा।